________________
जन्म-जन्मान्तर के कर्मों से जूझेगा। यह जूझना ही अन्ततः उसे आत्म-विजेता बनाता है। यह वह मार्ग है जिस पर चलकर कोई महावीर 'जिन' बनता है, कोई गौतम 'बुद्ध' बनता है। कोई पतंजलि 'प्रज्ञा' को उपलब्ध होता है।
विकल्प दोनों हैं, मार्ग दोनों हैं पर मंजिल पर पहुंचने पर दोनों 'दो' नहीं रहते। परमात्मा दोनों मार्गों का परिणाम है। एक में दूध पर मलाई का आना है, एक में दूध को जमाकर मक्खन निकालना है पर घी दोनों से ही बन जाएगा। एक में अनायास सब कुछ होता है, दूसरे में कोशिशें कामयाब होती हैं।
चैतन्य, सूर, तुलसी, मीरा, रामकृष्ण, रसखान -ये परमात्मा के पहले मार्ग के पथिक हैं। महावीर, बुद्ध, पतंजलि -ये परमात्मा के दूसरे मार्ग के पथिक हैं। इनके लिए परमात्मा आत्मा का विकास है। इनके लिए स्वयं का, स्वयं की स्वतन्त्रता का मूल्य है। ये स्वयं में ही अपने परमात्मा को देखते हैं।
रामकृष्ण परमहंस या चैतन्य महाप्रभु जैसे लोगों के लिए परमात्मा का पहला मार्ग है। उनके लिए अपना कोई निजी अस्तित्व, मैं भाव या अहंकार नहीं। बूंद ने अपना अस्तित्व मिटा लिया। बूंद सागर हो गई। जब तक बूंद स्वयं को बूंद बनाए रखना चाहेगी, तब तक वह सागर नहीं हो पाएगी। बूंद को सागर होना है, तो उसको मिटना पड़ेगा। यदि सर्वकार को उपलब्ध करना है, तो ममकार से मुक्त होना पड़ेगा। जब तक किसी के भीतर अपना अहंकार जीवित रहता है, तब तक परमात्मा के साथ उसका संबंध नहीं बैठता। जहाँ 'मेरा' टूटता है, वहीं आत्मा प्रकट होती है और जहाँ 'मैं' गिरता है, वहीं परमात्मा से साक्षात्कार होता है।
__ मार्ग चाहे मिटने का हो या जगने का, अहंकार दोनों मार्ग में बाधक है, अवरोधक है। मैं का भाव तो महज मनुष्य की एक पागल सनक है। और सनक! बड़ी अजीब वस्तु है यह। कब किसको चढ़ जाये, पता ही नहीं चलता। ईगो का दूसरा रूप है यह। छुरी है यह । खुद को भी काटती है और औरों को भी। सनक की भांग का नशा उतर जाना चाहिये। अहंकार मिट जाना चाहिये। अहंकार पहला और अन्तिम अवरोधक है। काया के भाव से ऊपर उठे, मुक्ति की भावना
पिया बिन झूरूं/११८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org