Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ मैनें उसकी आत्मा को धन्यवाद दिया कि उसने अपने आपको परमात्मा के भरोसे सौंप दिया है। नियति में जो लिखा है. वह स्वीकार। जो सारी धरती का संचालन करता है, उसके प्रति उसने समर्पित कर दिया है स्वयं को। प्रार्थना करनी है तो उसकी करो, जिसने सबका निर्माण किया है। जब प्रकृति हमारी व्यवस्था करने के लिए कटिबद्ध है, तब हम क्यों इतनी हाय-तौबा, गलाघोंट संघर्ष करने में लगे हैं? जो होना होगा, सो होगा ही। फल पकने पर पेड़ से गिरेंगे ही, तोड़ो तब भी, न तोड़ो तब भी, फिर पेड़ पर चढ़कर तोड़ने और खुद के गिर जाने की रिस्क क्यों उठाते हो? हाँ! नाव विपरीत जाए और तुम पतवार चलाओ, बात ठीक है पर जब हवाएँ ही अनुकूल हों, हवा खुद लक्ष्य की ओर नौका ले जा रही है, तब पतवारों की सरपच्ची दूर फेंको। वक्त पर सब कुछ पक जाता है। अच्छा या बुरा, वक्त से पहले फलित होगा ही नहीं। और जो फलित होना होगा, सो तो होगा ही। ‘होवे सो होई'। अब तो कह दो कि जो होना होगा सो होगा, हमने तो उस पर छोड़ दी है अपनी नौकाएं, अपनी पतवारें । बाबा कहते हैं पिया बिन निस दिन झूरूं खरी री। लहुड़ी बड़ी की कानि मिटाई, द्वारे ते आंखें कबहं न टरी री।। यानी मैं उस परमात्मा के प्रेम में दिन-रात उसी तरह झूरती रहती हूँ, जिस तरह एक प्रेमिका प्रेमी के विरह में तड़पती है। मैं खड़ी हूँ अपने द्वार पर कि कब प्रियतम आएं। 'नयन पथगामी भवतु मे'-मेरे नैन-पंथ से वे कब मेरे अन्तर्-मन में आएं। बाबा की आत्मा कहती है कि छोटे-बड़े की लाज छोड़कर, छोटे-बड़े की मर्यादा भूलकर मैं तो पिया के इन्तजार में खड़ी हूँ। मेरे भीतर की आंखें बाहर के इन दरवाजों को हर पल टटोलती रहती हैं कि कब पिया पहुंचे। मेरी आँखें एक पल के लिए भी नहीं झपकी हैं। उस नैन-पंथ से परमप्रिय परमात्मा को बार-बार आने का निमंत्रण दिया जा रहा है। पट भूषण तन भौकन उठै, पिया बिन झूलं/१२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128