Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 123
________________ मनुष्य जन्म मिलना बड़े पुण्य की बात है । चौरासी लाख जीव-योनियों में यह मनुष्य जन्म का फूल सौभाग्य से खिलता है पर क्या हाय-तौबा ही सौभाग्य है ? इतनी उठापटक ही पुण्योदय है ? मैं तो अपने से जुड़े हुए हर व्यक्ति से सदा कहा करता हूँ कि भगवान की ओर से तुम्हें दाल-रोटी खाने को मिल रही है, रहने के लिए एक छोटा-सा मकान ही क्यों न हो, मिल रहा है, पहनने के लिए दो जोड़ी कपड़े मिल रहे हैं, तो तुम्हें बहुत मिल रहा है, पर्याप्त है । कृतज्ञता प्रकट करो भगवान के प्रति कि हे परमात्मा ! तुमने कभी हमें भूखा नहीं रखा। हमारी तृप्ति की है । कल की मैं क्यों चिन्ता करूं । कम से कम मैं तो चिन्ता नहीं करता । मेरे पास चाहे कितने ही काम आ जाएं, निपटते चले जाते हैं अल्प साधनों के बावजूद । जब से समझ पाई, जब से धरती पर अवतरित हुआ, मां की कोख से जब बाहर आया तो उससे पहले ही परमात्मा ने मां के आंचल में दूध भर दिया। बेटा बाद में जन्मा, बेटे के जन्म के साथ ही मां का जन्म हो गया। दूध भरा मातृत्व उमड़ आया । जब बेटा पैदा होता है तो केवल बेटा ही पैदा नहीं होता; उसके साथ मातृत्व भी जन्म लेता है; तब नारी में एक मां पैदा होती है । परमात्मा की ओर से व्यवस्था है कि कोई भी बच्चा भूखा नहीं मरता है। जन्म के साथ ही उसके दूध की व्यवस्था है । प्रकृति पूरा-पूरा प्रबन्ध कर रही है । उसकी प्रबन्ध समिति बड़ी तगड़ी है। अब सोचो कि जो हमारी जन्म से व्यवस्था कर रहा है, वह जिंदगी भर हमारी व्यवस्था नहीं करेगा ? अभी एक साधिका यहां आई। संयोग से, पीछे उसके घर में चोरी हो गई । जेवरात आदि चले गये । जब मुझे जानकारी मिली तो मैंने अपनी ओर से कुछ कहना चाहा, खेद भी प्रकट करना चाहा । मैंने अभी सिर्फ इतना ही कहा, खेद है आपके घर..... वह तत्काल बोल पड़ी - प्रभुश्री ! आप यह क्या कह रहे हैं, मैं तो उस परिग्रह से मुक्त ही थी। गहने कभी पहनती तो हूँ नहीं, यूँ ही पड़े थे । अच्छा हुआ, जिसके थे वह ले गया। व्यर्थ के बोझ से मुक्ति मिल गई । मुझे उसकी अनासक्ति प्रफुल्लित कर गई । मैंने तब सिर्फ इतना ही कहा- तुम धन्य हो । सचमुच, अगर वह घटना किसी और के साथ घटित होती, तो वह गाँव लौट जाती पर वह साधिका बड़े धैर्य से सेवा में लगी रही । Jain Education International सो परम महारस चाखै/१२३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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