Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 113
________________ पिया बिन झूलं. . . . . मेरे प्रिय आत्मन्! __ बाबा आनंदघन के अध्यात्म-पदों के माध्यम से हमने जीवन, जगत् और अध्यात्म के कुछ बिन्दुओं को समझने का प्रयास किया। विगत सात दिनों से हम आनंदघन के आनन्द में डूब रहे हैं, अध्यात्म के अमृत का रसास्वादन कर रहे हैं। बाबा की यात्रा में अभी तक कुल तीन पड़ाव आए हैं। पहला मुक्ति की कामना का था। दूसरा पड़ाव सद्गुरु की कृपा का और तीसरा पड़ाव परमात्मा के प्रेम में अपनेआपको डुबाना। अन्तर्-हृदय में मुक्ति की अभीप्सा हो, तो ही सद्गुरु की खोज होती है। जितनी गहरी अभीप्सा होगी, सद्गुरु की कृपा उतनी ही उपलब्ध होगी। सद्गुरु की कृपा और प्रसाद जितना हमें अहोभाव के साथ उपलब्ध होगा, परमात्मा के साथ हमारे हृदय का उतना ही सम्बन्ध हो पायेगा। अध्यात्म के मार्ग पर वे ही लोग उत्सुक हों, जिनके अन्तर्-हृदय में मुक्ति की तड़प जगी है, जिनके अन्तर्-मन में परमात्मा की, अस्तित्व सो परम महारस चाखै/११३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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