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पद
पिया बिन निसदिन झूरूं खरी री। लहुड़ी बड़ी की कानि मिटाई, द्वार ते आँखें कबहूं न टरी री । पट-भूषण तन भौकन उठै, भावै न चोकी जराव जरी री।। सिव-कमला आली सुख न उपावत, कौन गिनत नारी उमरी री । सास, विसास, उसास न राखै, नणद निगोरी भौरे लरी री।। और तबीब न तपति बुझावै, आनंदघन पीयूष झरी री।।
पिया बिन झू/११२
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