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फूलों पर थिरकती किरणें
मेरे प्रिय आत्मन्!
जीवन दर्गम पगडंडी की तरह टेढ़ा-मेढ़ा है, राजमार्ग की तरह सीधा-सपाट नहीं है। बहुत गहरा है। अन्तर्-बोध का शुक्रगुजार हूँ, जिसने जीवन के कई रहस्यों को दिखाया पर देख रहा हूँ कि जीवन को अभी और देखना, समझना है।
हम गहरे उतर सकें, तो अपने भीतर के शून्य में एक विराट होता हुआ नूर दिखाई देगा। अपने आंगन में आकाश उतरता हुआ नजर आएगा। आसमान से तृप्ति की एक बूंद गिरेगी, मानो बूंद में सागर ही उमड़ आया हो। फूल तो खिलेगा ही, फूलों पर किरणें मानो पायजेब पहने हुए थिरकती लगेंगी। वह नाचती-झूमती किरण कब सूरज बन जाए, कब सूरज तक पहुंचाए, नहीं कहा जा सकता पर किरण की डोर ही सूरज तक पहुंचाती है।
सम्भव है, आज तुम्हारा जीवन घटाटोप अंधकार में हो पर प्रकाश है। अंधकार का बोध हो जाये, हृदय में प्रकाश की पिपासा जग जाये, तो ये कदम अंधकार से बाहर आ सकते हैं। जीवन के फूल पर
सो परम महारस चाखै/६६
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