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. पद
अवधू क्या मांगूं गुनहीना, वे तो गुनगन गगन प्रवीना । गाई न जानूं, बजाई न जानूं, न जानूं सुर-भेवा। रीझ न जानूं, रिझाई न जानूं, ना जानूं पर-सेवा ।। वेद न जानूं, कतेब न जान, जानूं न लक्षण-छन्दा। तरकवाद-विवाद न जानूं, ना जानूं कवि-फन्दा।। जाप न जानूं, जवाब न जानूं ना जानूं कथ-वाता। भाव न जानूं, भगति न जान, जानूं न सीरा-ताता।। ज्ञान न जानूं, विज्ञान न जानूं, ना जानूं भजनामा। आनंदघन प्रभु के घरि द्वारै, रटन करूं गुण-धामा।।
फूलों पर थिरकती किरणे/६८
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