Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ छोटी-सी महानता पर गुमान क्यों? हम धन जमा करते हैं अपने बेटे-पोतों के लिए और यही क्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता जाता है। बाबा चेताते हैं कि मनुष्य अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण ही आने वाले जन्म में सांप, चूहा और दीमक बनता है, उस जमा धन की रक्षा हेतु ही वह बांबी में जन्म ग्रहण करता है। ____ मैंने पहले भी कहा कि धन साधन है, साधन की सार्थकता तभी है, जब उसका उपयोग हो जाए। संजो कर रखने से कोई फायदा नहीं क्योंकि उसे यहीं छोड़कर चले जाना है। इसी तरह शरीर का उपयोग भी कर लो नहीं तो यह शरीर भी मिट्टी के कच्चे मकान की तरह छिन-छिन खिर रहा है। यह शरीर, यह धन किसी के प्राण बचाने के काम आ जाता है, तो इससे बड़ा, इस तुच्छ धन का सार्थक उपयोग और क्या हो सकेगा? साधन, साधन है; साध्य नहीं। साधन का जितना उपयोग करोगे साधन आपको उतनी ही सार्थकता और प्रखरता देगा। साधन को जितना कमरे में बन्द रखोगे साधन उतना ही निरर्थक होता जाएगा। जंग चढ़ जाएगी उस पर। चलती का नाम गाड़ी, खड़ी का नाम खटारा। आदमी चलता रहे, कुछ करता रहे, साधन उपयोग में आता रहे। इसीलिए तो बाबा धन को लक्ष्मी नहीं अलक्ष्मी कहते हैं। अगर असली पूंजी पद, प्रतिष्ठा और धन ही है तो धन होने पर भी व्यक्ति अशांत क्यों? पद होने पर भी विक्षिप्त क्यों? पैसे से मिलने वाली प्रतिष्ठा और पद कोई महत्व नहीं रखते क्योंकि पैसा चला जाए तो पद और प्रतिष्ठा, जिसके लिए हमारा सम्मान होता है, हमारे लिए ही कटु व्यंग्य बन जाते हैं। तब पद और प्रतिष्ठा से मोह नहीं वरन् आत्मग्लानि होती है। व्यक्ति को कभी भी किसी के द्वारा की गई निन्दा और प्रशंसा की परवाह नहीं करना चाहिये। यह तो दुनिया है। गधे पर बैठ कर चलोगे तो भी हंसेगी, गधे को कंधे पर बैठाकर चलोगे तो भी हंसेगी। दुनिया का काम हंसना है। तुम अपने हिसाब से चलो, श्वान भले ही भौंकते रहें, गजराज उसकी कहाँ परवाह करता है। तुमने दीवारों पर एक नाम पढ़ा होगा- जय गुरुदेव । मथुरा में इनका मठ है। जय गुरुदेव के सारे शिष्य बोरी के कपड़े, टाट के सो परम महारस चाखै/७७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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