Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 94
________________ बाबा कहते हैं, 'जन-जन आगलि, अन्तरगतिनी, बातड़ी करिये केही ।' आध्यात्मिक जीवन में मानस-मित्र की जरूरत पड़ती है ताकि अन्तर्-जगत् की गति और प्रगति की बातें उससे की जा सकें। अन्तर्-जगत् के संवाद स्थापित किये जा सकें। आम लोगों को कहने से कोई मतलब नहीं निकलता उल्टे लोग हँसी उड़ायेंगे, पागल समझेंगे। लोगों को पागल कहते देर भी नहीं लगती, मीरा तक को पागल कह डाला। पागल मीरा नहीं थी, पागल तो लोग थे, जिन्होंने अपने पागलपन में उसके पागलपन को न समझा और नतीजा यह निकला कि उन शम्भुलालों ने जीसस को क्रास का इनाम दिया, सुकरात को जहर से पुरस्कृत किया, मंसूर के हाथ-पाँव काट डाले, गांधी को स्वतंत्रता के सम्मान में गोलियां दीं। जीवन के साधना-मार्ग में आत्म-मित्र ही सहायक बनते हैं। मुझे पता है कि साधना-मार्ग में भी मित्र की आवश्यकता पड़ती है लेकिन वह मित्र कैसा हो, यही खास बात है। ऐरे-गैरे काम नहीं देते। जितनी साधना में गहराई होती है, इस तरह के मित्र में उतनी ही गहराई होती है। मेरे देखे तो सद्गुरु के बाद अगर किसी की जरूरत पड़ती है, तो वह है मित्र, आत्ममित्र। आनंदघन प्रभु वैद वियोगे, किम जीवे मधुमेही । बाबा भीगी आँखों से कह रहे हैं- मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति बगैर योग्य चिकित्सक के कैसे स्वस्थ हो सकता है। सद्गुरु वैद्यराज हैं। एक मधुमेह तो तन का होता है और एक मधुमेह जीव के मन का होता है। तन के मधुमेह को ठिकाने लगाने के लिए दुनिया में डॉक्टर भरे पड़े हैं लेकिन संसार के रस का जो मधुमेह मनुष्य को लगा है, जन्म-जन्मान्तर के संवेगों का जो मधुमेह सता रहा है, उसके लिए तो दुनिया में एक ही प्रभु है और वह है सद्गुरु। संसार का रस तो पिघला हुआ शीशा है, काया का रस तो पानी का उबाल भर है। संसार के रस में लगे हुए मन को अन्तर-यात्रा के लिए लौटाना जीवन का प्राथमिक मगर महान रूपान्तरण है, गहरी आत्मक्रांति है। सद्गुरु वही है जो यह क्रांति मचा दे। जो भीतर के जन्म-जन्मान्तर के कचरे को, अकूड़ी को राख करने की आग सुलगा दे, संगत, सनेही संत की/६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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