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बस, अनुभव की एक किरण उतर आये ।
मेरे पास आस्थाओं को लेकर मत आओ, अपनी शंकाओं को लेकर आओ ताकि उन शंकाओं को मैं मिटा सकूं और समाधान का अनुभव करवा सकूं। मेरी बात तभी मानिए जब मेरी बात आपके अनुभव में भी उतर जाए महत्व मेरा और मेरी बात का नहीं, अनुभव और प्रयोग का है। श्रद्धा के पास जब तक अनुभव की आंख नहीं होती तब तक श्रद्धा अंधी है। श्रद्धा तभी सही श्रद्धा बनेगी जब उसके पास अनुभव, प्रयोग और परिणाम की कोई दिशा होगी ।
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महत्व
‘आनंदघन पुरुषोत्तम नायक, हितकरि कंठ लगाई', महान् पुरुषों को अपने गले लगाओ । सद्विचार हमारे चिन्तन में हों और सद्पुरुषों का हमें सान्निध्य हो । कंठ लगाओ, गले लगाओ, अपने आलिंगन में ले लो महान् पुरुषों को, ताकि 'वसुधैव कुटुम्बकम्' वाला प्रेम हमें मिल सके। उनका प्रेम हमारे जीवन की प्रेरणा बन जाये ।
हृदय की पवित्रता और आत्मा का प्रेम ही आकाश है। एक ऐसा प्रकाश, जहां आभार और आनंद की चंदन-सी बौछारें बरसती हैं । एक ऐसी रंगीली होली, जिसे खेलने के लिए भगवान् विष्णु तक धरती पर चले आते हैं।
बाबा कहते हैं- समता रंग रंमीजै । रंगो समता के रंग में, अपने ही रंग में, पिया के रंग में । बन्द कमरे से बाहर आओ, कोई बुला रहा है रंगों से भीगा, रंगने के लिए, अपने में होने के लिए ।
नमस्कार !
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सो परम महारस चाखै/७६
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