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... संगत सनेही संत की
संगत सनेही संत की
मेरे प्रिय आत्मन्!
किसी प्रिय साधक ने एक भाव-गीत लिख भेजा है
मेरे मन के अंधतमस् में, ज्योतिर्मय उतरो। कहाँ यहाँ देवों का नंदन, मलयाचल का अभिनव चंदन । मेरे उर के उजड़े वन में, करुणामय विहरो। मेरे मन के अंधतमस् में ज्योतिर्मय उतरो। नहीं कहीं कुछ मुझमें सुंदर, काजल-सा काला यह अंतर । प्राणों के गहरे गह्वर में, ममतामय विचरो। मेरे मन के अंधतमस् में ज्योतिर्मय उतरो।
सो परम महारस चाखै/८३
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