Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 68
________________ पद साधो भाई समता रंग रमीजै, अवधु ममता संग न कीजै । संपत्ति नाहीं नाहीं ममता में, रमतां राम समेटै। खाट-पाट तजि लाख खटाऊ, अंत खाक में लेटै।। धन धरती में गाडै बौरे, धूरि आप मुख लावै । मूषक सांप होवैगा आखर, तातैं अलच्छि कहावै।। समता रतनागर की जाई, अनुभव चंद सुभाई। काल-कूट तजि भाव में श्रेणी, आप अमृत ले जाई।। लोचन-चरण सहस चतुरानन, इनतें बहुत डराई।। आनंदघन पुरुषोत्तम नायक, हितकरि कंठ लगाई।। समता का संगीत सुरीला/६८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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