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सारी मानवता उसकी संविभागी बन जाए। तब तो वह ममता व्यक्ति के लिये समता से भी बढ़कर है अन्यथा एक सकुंचित दायरे तक सीमित रहती है ।
व्यक्ति विराटता से वंचित न रहे इसीलिए आनन्दघन सावचेत करते हैं कि साधो भाई समता रंग रंगीजै । दोनों ही परिस्थितियों में तटस्थता । जैसे सामाजिक व्यवस्था के लिए लेनिन ने साम्यवाद की स्थापना की, वैसे ही बाबा समता की स्थापना करना चाहते हैं ।
जीवन में यह बहुत स्वाभाविक है कि कव अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियां बनें। परिस्थितियां तो रथ के पहिये के समान होती हैं । पता नहीं कब कौन-सी तूली ऊपर चली जाए और कौन-सी नीचे - आ जाए । जो अभी अनुकूल परिस्थिति लगती है, वही प्रतिकूल बन जाती है और प्रतिकूल अनुकूल बन जाती है ।
कबीरा यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ । कालि जो बैठा मंडपै, आज मसाने दीठ । ।
फिर किसका गुमान ! क्षण में मीठा, क्षण में खट्टा । कल जो रंगमंडप में खुशियां मना रहा था, आज सवेरे उसे श्मशान में चिता पर पड़े पाया। अभी जो सुविधा लग रही थी, वही दुविधा लगने लगी ।
समता की आवश्यकता मानव जीवन में इसलिए है कि परिस्थितियां चाहे जैसा अपना रूप बदल लें लेकिन हर हाल में मानव आनन्दित और प्रसन्न रहे । इसीलिए समत्व, योग और सामायिक है । समझदार आदमी के सामने प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित हो जाएंगी, तो भी वह बड़ा मस्त रहेगा और नासमझ व्यक्ति अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद भी तनावग्रस्त और संत्रस्त हो जाएगा ।
अमीर आदमी किसी गरीब की उपेक्षा करता है, तो यह गरीब की उपेक्षा नहीं, यह अपने आप की उपेक्षा है । नासमझ आदमी पाकर भी रोता है और समझदार आदमी न पाकर भी खुश रहता है । व्यक्ति के जीवन में तो तटस्थता रहनी चाहिये । समता का अर्थ ही तटस्थता है । न तेरा न मेरा । दोनों के मध्य तटस्थता का वातावरण बना रहना चाहिये। तटस्थता में ही शांति है, एकाग्रता है, मुक्ति का रंग है ।
समता का संगीत सुरीला / ७४
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