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तुझे पकड़ा दी हैं और तू कहता है कि विश्वास नहीं है। तिजोरी तक की मैंने चाबियां दे रखी हैं और तू कहता है कि विश्वास नहीं है। नौकर चुटकी लेते हुए बोला- यही तो मुसीबत है। आपने चाबियां तो इतनी सारी सौंप दी हैं मगर एक भी चाबी लगती नहीं है।
कोरी बातों से कुछ नहीं होगा। ये चाबियां भी अन्ततः एक बोझ महसूस होंगी, तब ताला सामने आएगा। उस कुए की क्या मूल्यवत्ता जो प्यासे की प्यास बुझाने में असमर्थ है। सद्गुरु वह कुआ है जो प्यासे की प्यास बुझाये । प्यास जगाए भी वही और बुझाये भी वही।
गुरु का कार्य अन्तर-बोध को जागृत करना है। मात्र बाहर की उज्ज्वलता से जीवन के मूल अस्तित्व का क्या संबंध है? अन्तर का विरेचन का होना आवश्यक है। अन्तर् में कलुषता भरी है तो बाहर का सौन्दर्य क्या कर पायेगा? गुरु का कार्य अन्तर-सौन्दर्य को प्रकट करना है।
रीझते हैं आप, बाहर की सफाई पर । वर्क सोने का लगा है, गोबर की मिठाई पर ।।
हमारा रीझना केवल बाहर-बाहर हो रहा है और सद्गुरु का सम्बन्ध बाहर से नहीं अन्तरात्मा से होता है। वह हमारी अन्तर्-दशा पर रीझता है।
दुनिया में चेतना के तीन आयाम हैं- एक वह चेतना है, जिसे हम पूर्ण-मूर्च्छित कहेंगे। जो बाहर से भी मूर्छित है और भीतर से भी। दूसरी चेतना वह है जिसे हम बहिर्जागृत लेकिन अन्तरमूर्छित कहेंगे। बाहर से जगा हुआ है, व्यवहार में तो जागृत, बड़ा चुस्त है पर भीतर से वह मूर्छित है।
तीसरी वह चेतना है, जिसमें व्यक्ति अन्तर्जागृत भी होता है और बहिर्जागृत भी। बाहर से भी जगा हुआ है और भीतर से भी जगा हुआ है। आदमी बाहर से सोया रहा, कोई दिक्कत नहीं। बाहर जागा हुआ है और भीतर सोया है, भीतर मूर्छा है, भीतर में नींद है तो बाहर-बाहर का जागरण, जागरण नहीं कहलाता। वह मात्र बाहर की
जगत् गुरु मेरा/५६
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