Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 62
________________ जितना गृहस्थ झुकता है, उससे दस गुना अधिक। निश्चित रूप से आनंदघन का अहंकार इतना झुका होगा। तभी इतने गहरे पद का निर्माण हुआ । खुद ही को मिटाओ, तो ही खुदा हाजिर होता है । गुरु के घर सब जरित जरावा | चेरे की मढ़िया में छप्पर छावा ।। गुरु का वैभव तो सचमुच अद्भुत है । उसका ज्ञान, तेज, योग - सभी अद्भुत ! गुरु के घर में तो रिद्धि-सिद्धि का ऐसा अकूत भंडार भरा है लेकिन चेले के घर में खपर - अधारी यानी केवल भिक्षा पात्र और वह भी अंधेरे से घिरा हुआ । गुरु का तो वैभव ही निराला होता है । तभी तो कबीर जैसे सन्त ने कहा, 'अगर मैं सात समुद्रों की स्याही और धरती पर जितनी भी लकड़ियां व वन-राशि है, सब की कलम बना लूं तो भी गुरु की महिमा का, सद्गुरु के महात्म्य का बखान नहीं किया जा सकता।' गुरु के घर में, उनके जीवन में, उनके अन्तर् - हृदय में तो कई-कई रंग के आभूषण सजे हुए हैं। हतभागा तो मैं ही हूँ जिसकी मढ़िया में, जिसकी कुटिया पर केवल घास का एक छप्पर पड़ा है। केवल उसी की छांव है, अज्ञान के घुप्प अंधकार में मेरा क्या, कोई माया, मूर्च्छा या सम्मोहन कब आकर घेर ले ? चेला, जो महान् पथ पर चल रहा था, उससे फिसल जाएगा। ये सद्गुरु ही हैं, जो मुझे संभाल सकते हैं । सद्गुरु ही हैं, जो मुझे तार सकते हैं, मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, जीवन के शाश्वत मूल्य प्रदान कर सकते हैं। गुरु मोहे मारे सबद की लाठी | चेरे की मति अपराध नी काठी । । चेले की स्थिति तो केवल अपराध और अज्ञान से घिरी हुई है लेकिन सद्गुरु सबद की ऐसी लाठी मारता है कि आदमी की मति अपने-आप सुधर जाती है । उसका काया कल्प हो जाता है । शब्द तो वे ही होते हैं, जो शब्द हम लोग बोलते हैं, गुरु भी वही शब्द बोलता जगत् गुरु मेरा / ६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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