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उनके चरणों को छोड़ते नहीं। वे तो प्रतीक्षा करते हैं कि हम पर गुरु की लाठी बरसे, गुरु की फटकार हमें भी मिले और हम भी आत्मबोध पा लें। उनके लिए तो गुरु ही सर्वस्व है
गुरु की मूरत रहे ध्यान में, गुरु के चरण बनें पूजन। गुरु-वाणी ही महामंत्र हो, गुरु-प्रसाद से प्रभु दर्शन।
मेरे लिए तो बस गुरु की मूरत ही ध्यान में बसे, गुरु के चरण ही मेरे लिए परम-प्रार्थना, परम-आराधना, परम-पूजा बन जाएं। गुरु के वचन, गुरु की वाणी, गुरु का संकेत -मेरे लिए संसार का सबसे बड़ा महामंत्र हो जाए क्योंकि गुरु की कृपा व प्रसाद से अन्तर्-दर्शन सम्भावित है, हरि-दर्शन सम्भावित है। सद्गुरु की कृपा का परिणाम हैस्वयं से साक्षात्कार, भीतर में जन्म-जन्मान्तर से बसे संसार के दलदल से मुक्ति, अन्तर्-मोक्ष।
नमस्कार!
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सो परम महारस चाखै/६५
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