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मूर्च्छा - मदहोशी है, सद्गुरु चाहता है, वह बेहोशी मिट जाए, नशा उतर जाए ।
एक आदमी बड़ा शराबी था और शराब के नशे में वह रात को देर-सबेर अपने घर पहुंचता । पत्नी को उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती। दरवाजा खोलना पड़ता । आखिर पत्नी ने एक रास्ता निकाला। उसने पति से कहा कि हम एक नया ताला ले आते हैं । उसकी दो चाबियां रहेंगी। एक तुम्हारे पास और एक मेरे पास । तुम जब बाहर जाओ, शराब पीने के लिए तो एक चाबी अपने साथ ले जाना और जब वापस आओ तो चाबी तुम्हारे पास रहेगी, ताला खोलकर अन्दर आ जाना।
संयोग ऐसा बना कि अगले दिन वह शराब पीकर वापस लौटा । पत्नी जगी हुई थी। मकान की छत पर खड़ी वह पति का इन्तजार कर रही थी। पति पहुँचा। बाहर बल्ब जल रहा था, प्रकाश था। उसने काफी देर तक दरवाजा ढूंढा । जब काफी देर तक दरवाजा नहीं खुला तो पत्नी ने ऊपर से आवाज दी कि कहीं चाबी खो तो नहीं गई है ? इतनी देर क्यों लग गई ? शराबी पति ने कहा कि चाबी तो मेरे हाथ में है पर ताला खो गया है। हो सके तो उपर से ताला फेंक दे।
ताला सामने है, चाबी हाथ में है मगर चाबी लग नहीं पाती । इसलिए नहीं लग पाती है कि शराब का नशा है और सद्गुरु का काम है कि वह नशा कैसे उतर जाए ? गहरी मूर्च्छा कैसे टूट जाए? सद्गुरु का यही उपयोग है ।
इस दुनिया में चाबियां तो ढेर सारी हैं, सबके पास चाबियां हैं लेकिन सारी चाबियां संसार को खोलने की हैं, मुक्ति के तालों को खोलने की चाबी किसी के पास नहीं है । चाबियों के झुमके तो बड़े लटकाए - लटकाए रहते हैं । पश्चिम बंगाल में चाहे कोई महिला दो सौ रुपये महीने की नौकरी करती हो, फिर भी उसकी साड़ी के पल्लू में दस-पाँच चाबियां तो मिल जाएंगी । चाबियों की खनखनाहट बड़ा आनन्द देती है । तिजोरी न हो, माल न हो, फिर भी चाबियों की खनखनाहट बड़ा मजा देती है, मन को तृप्ति देती है । एक नौकर ने अपने सेठ से कहा कि मैं आपके यहां बीस वर्षों से नौकरी करता हूँ मगर अभी तक भी आप मुझ पर पूरा विश्वास नहीं करते । सेठ ने कहा- बेवकूफ ! तू कैसी बात करता है । मैंने घर-भर की सारी चाबियां
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सो परम महारस चाखै / ५५
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