Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 43
________________ भले ही उसे इन चीजों से मुक्त कर दे, व्यक्ति स्वतः मुक्त नहीं होता। चोंटा रहता है, गाय के थनों में लगे जोंक की तरह । कड़वा पानी पीने का ऐसा अभ्यास हो गया है कि अब तो मीठा पानी रास ही नहीं आता। कड़वापन चाहिये। क्रोधी, क्रोध छोड़ दे, उसे भीतर कुछ रिक्तता सी महसूस होगी। जड़ों में पैठ चुका है राग, माया। बाबा कहते हैं- जीऊ जाने मेरी सफल घरी। पत्नी है, बच्चे हुए, उससे मैंने जिंदगी का आनन्द लिया। जीवन की घड़ियां सफल हो गईं। लेकिन भूल जाता है, माया में बंधा है। स्वतन्त्रता उसका स्वभाव है, उसका अधिकार है पर कारागार ऐसा रास आ गया है कि मुक्त होने का जी ही नहीं करता। कारागार से कोई निकाल भी दे, तो मन बार-बार उसी कारागार के लिए, चुन्नु-मुन्नु, राखी-रेखा के पिंजरे के लिए मचलेगा। बाबा कहते हैं- सुत वनिता धन यौवन मातो, गरभ तणी वेदन बिसरी। पुत्र-पत्नी, धन-यौवन की मदिरा में डूबा आदमी भूल चुका है कि वह किन वेदनाओं से गुजर कर आया है। जीवन का अर्थ केवल पत्नी, बच्चे, धन का उपभोग ही नहीं है। जीवन के अर्थ इनसे आगे भी हैं। पत्नी-बच्चों में ही जीवन का आनन्द-उपसंहार नहीं है, जीवन तुम्हारे लिए भी है। अपने लिए भी कभी जिओ। पत्नी-बच्चों के लिए घर से दुकान और दुकान से घर बहुत हो लिये। कुछ अपने लिए भी जिओ। नशे से बाहर आकर देखो कि तुम क्या हो! मुक्त गगन के पंछी या हाड़-मांस के अस्थि-पिंजर में जकड़े कोई पालतू पंछी? ___ मृत्यु हो, उससे पहले जीवन, मुक्ति के मंच पर आ जाए। 'आई अचानक काल तोपची, गहैगो ज्यूं नाहर बकरी'। हर व्यक्ति मृत्यु की कतार में खड़ा है। मृत्यु तो आएगी। कब किसका क्रम आ जाए, यह पता नहीं लगता। जब मृत्यु आएगी तो व्यक्ति को ऐसे धर दबोचेगी, जैसे शेर बकरी को दबोच लेता है। मृत्यु का पता नहीं है, कब किस रूप में आए। जीवन बड़ा अजीब है पल-पल रंग बदलता है। मृत्यु की ओर बढ़ता है। आदमी सोचता है- मैं यह करूंगा, वह करूंगा। कोई गारंटी नहीं है कि तुम दस साल तक ही जी पाओगे या नहीं। सोचते हो कल करुंगा मगर क्या विश्वास है कि कल आएगा ही। जीवन कल नहीं, आज है। वह अभी है। जो यह सोचता है कि जीवन कल भी है, तो सो परम महारस चाखै/४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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