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हमेशा याद रखो, सपना आखिर सपना है, सोये बदन में जागे मन की उड़ान है। सपना होता तो अपना ही है, फिर भी सपना, सपना है, वह अपना होकर भी, अपना नहीं है, मात्र सपना है।
बाबा कहते हैं-आनन्दघन हीरो जन छांडे, नर मोह्यो माया कंकरी। आदमी हीरे को छोड़ रहा है और कंकरी इकट्ठी कर रहा है। निश्चय ही धन का उपयोग है। धन का उपयोग खर्च करने में है, संजो कर रखने में नहीं। साधन हमेशा उपयोग करने के लिए होता है। साधन को साध्य मत बनाओ। धन साधन है, उसका उपयोग कर डालो।
जो लोग धन बटोरने में विश्वास रखते हैं उसका उपयोग करने में नहीं, वे चूक रहे हैं, हमारे दादा ने भी बटोरा। सब यहीं छोड़ कर चले गये। धन का उपयोग कहाँ हुआ? बटोरा हुआ, जब यहीं छोड़ गये, तो धन का उपयोग अपने लिए कहाँ हुआ? आपके पिता ने दादा का ही मार्ग अपनाया। आप भी, आपकी अगली पीढ़ी भी, सभी बटोरेगे, छोड़कर चले जाएंगे। धन का उपयोग करो। संजोकर रखने से उसका कोई अर्थ नहीं। आपने सोना इकट्ठा करके रख लिया और उसे पहन नहीं पाते, तो उसकी प्राप्ति का क्या अर्थ हुआ? आदमी संजो-संजो कर रखता है और स्वयं मर जाता है।
पैसे का उपयोग कर लो, शरीर का उपयोग कर लो। शरीर तो क्षणभंगुर है। इसलिए जितना ज्यादा उपयोग कर सकते हो, कर लो। नश्वर या अनश्वर किसी के लिए भी कर लो पर कुंठित मत रहो। मृत्यु निरन्तर हमारे करीब आ रही है, इससे पहले कि मृत्यु हमें हड़पे, तन, मन, धन, जीवन का उपयोग कर लें। मृत्यु हमारे करीब आए, तो हम अपनी छाती पर कोई तरह का भार लिये न हों। मुक्त गगन के पंछी बनें। 'अपना पथ तो मुक्त गगन' जियें मुक्त होकर, मुक्ति का हर पल आनंद उठाते हुए। बाबा का नाम है-आनंदघन । बरस रही है बदरिया जिस पर आनंद की, मस्ती की, खुमारी की। जागो! खिड़की से बाहर झांककर देखो- कौन बुला रहा है तुम्हें मुस्कुराते हुए। उधर
देखो!
नमस्कार!
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सो परम महारस चाखै/४५
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