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___ एक महान दार्शनिक हुए हैं -बायस । बायस के बारे में प्रसिद्ध है कि वे दिन के उजाले में हाथ में कंदील थामे नगर-नगर, गांव-गांव, एक-एक विद्यालय-महाविद्यालय तक जाया करते। एक इतना बड़ा दार्शनिक और दिन में कंदील थामे, चिमनी लिये गांव-गांव, गली-गली घूमे, तो लोगों को लगता कि बायस पागल हो गए हैं। दिन में सूरज के उजाले में कंदील थामे चलते हैं। लोग कारण पूछते तो वे कहते, 'मैं एक शिष्य की तलाश में हूँ। लोग कहते कि तुम शिष्य की तलाश में हो, हम शिष्य बनने को तैयार हैं अगर तुम अपना ज्ञान, अपनी संबोधि, जीवन के रहस्य हमें प्रदान कर दो। बायस झल्ला उठता। कहता कि तुम शिष्य नहीं हो, तुम सब शैतान हो। तुम में से कोई भी मेरे काबिल नहीं है। तुम सब औंधे घड़े हो। मुझे ऐसा व्यक्ति चाहिये जो मेरे लिए 'खुद' को मिटा सके। तुम सब अहंकार और अकल के पुतले हो।
___ लोग बायस की खिल्ली उड़ाते। स्वयं पात्र की तलाश कर रहे हैं, हाथ में कंदील थामकर! क्या दिन के उजाले में तुम्हें दिखाई नहीं देता? इतना बड़ा सूरज चमक रहा है, यह कंदील जिसके सामने कुछ भी नहीं है। तुम उसे कैसे ढूंढोगे? तो बायस कहा करते, 'जिस पात्र को सूरज की रोशनी में नहीं ढूंढा जा सकता, उस पात्र को दीये की रोशनी में ढूंढा जा सकता है। इस कंदील को तुम सामान्य कंदील मत समझो। यही तो वह कंदील है, जिसके द्वारा मुझे शिष्य की तलाश करनी है। जिसने पूछ लिया कि दिन के उजाले में कंदील क्यों जलाया, उसने तो पहले चरण में ही अपनी अपात्रता जाहिर कर दी।'
गुरु के सामने क्यों का प्रश्न नहीं आता; कैसे का प्रश्न नहीं आता; गुरु तो मात्र देता है, लुटाता है। जैसे दार्शनिक बायस कंदील लेकर अपना ज्ञान देने के लिए, अपने अनुभव देने के लिए शिष्य की तलाश करता है, ऐसे ही सद्गुरु अपना ज्ञान, अपनी संबोधि, अपना आत्मबोध किसी को देने के लिए, किसी में स्थानान्तरित करने के लिए सही पात्र की, सही समय की तलाश करते हैं।
गुरु का महत्व उनके लिए है, जिनके हृदय में प्यास होती है। अभीप्सा होती है। कोई प्यासा है तो गुरु का अर्थ है। प्यास ही नहीं है, तो सद्गुरु के सोतों का क्या अर्थ? कुआ उनका नहीं है, जिनके
जगत् गुरु मेरा/५२
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