________________
हम पंछी उन्मुक्त गगन के, हमें न बांधो प्राचीरों में।
जो व्यक्ति पिंजरे में है अगर उसमें मुक्ति की लालसा है, तो निश्चित तौर पर वह मुक्त हो सकता है। आकाश में उड़ कर ही जान सकते हो कि आकाश का कितना आनन्द हो सकता है। घर में बैठा
आदमी बाहर के आनन्द का अनुभव नहीं कर सकता। पिंजरे के पंछी, जिनके भीतर मुक्ति की कामना है, वे लोग यहां तक आएं। मेरे पास आपको देने के लिए सिर्फ 'मुक्ति' है। मैं तो सिर्फ अनुभव की किरण आपके भीतर उतार सकता हूँ। केवल वह आँख खोल सकता हूँ, जिससे आप पिंजरे के पार फैला निरभ्र आकाश देख सकें। जीवन, जगत् को समझने की अन्तर्-दृष्टि दे सकता हूँ। __मुक्ति की भावना को लिये हुए ही, मैं आनंदघन के कुछ पदों को ले रहा हूँ। पिंजरे के पार, विराट् आकाश में उड़ने की कुछ अभीप्सा यह पद जगा दे, तो रचना सार्थक हो जाएगी। बाबा की आत्मा इससे प्रसन्न होगी। पद है
जीऊ जाने मेरी सफल घरी। सुत बनिता धन यौवन मातो, गरभ तणी वेदन बिसरी । अति अचेत कछु चेतत नाहीं, पकरी टेक हारिल लकरी । आई अचानक काल तोपची, गहैगो ज्यूं नाहर बकरी । सुपन-राज साँच करि राचत, माचत छांह गगन बदरी। 'आनंदघन' हीरो जन छांडै, नर मोह्यो माया कॅकरी।।
बाबा कहते हैं- मोह माया में उलझा हुआ व्यक्ति धन-यौवनदाम्पत्य सुख को पाकर ही यह समझता है कि मेरे जीवन की घड़ी सफल हो गई। जीवन के मार्ग से गुजरते तो सभी लोग हैं, ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो जीवन का कोई विकल्प बन जाए। जिस मार्ग से महावीर और बुद्ध गुजरे थे, उसी मार्ग से हम लोग भी गजर रहे हैं। सबका जन्म एक ही तरीके से हुआ। सब में वही रोग, बुढ़ापा आ बसता है और सभी की मृत्यु होती है। जीवन के मार्ग में, जीवन के तानों-बानों में, कहीं कोई फर्क है, तो सिर्फ इस बात का कि कोई
सो परम महारस चाखै/४१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org