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आदमी जागकर इस मार्ग से गुजरता है और बाकी सोए-सोए ।
मूर्छित दशा में जो जीवन के मार्ग से गुजरते हैं, उन्हें पुनः पुनः संसार के दलदल में लौट आना पड़ता है। उन्हें पिंजरे का व्यामोह बुला लेता है, अपनी ओर खींच लेता है। जो जाग्रत अवस्था में बोधपूर्वक जीवन के मार्ग से गुजरते हैं वे ही मुक्ति का रसास्वादन करते हैं। पुनर्जन्म और कुछ नहीं, संसार की पाठशाला में तुमने प्रवेश लिया, ठीक से पढ़ न पाए, परीक्षा दी, फेल हो गए, वापस जीवन की उसी कक्षा में पढ़ने के लिए भेज दिए जाते हो। जो पास हो गया, वह आगे बढ़ गया। जिसने जीवन के पाठों को सही ढंग से नहीं पढ़ा, वह जन्म-जन्मांतर तक लौटेगा। बहेलियों से घिरेगा, जाल में फंसेगा, मरेगा।
बुद्ध-महावीर, कृष्ण-कबीर, घनानन्द-आनन्दघन का जीवन भी जीवन ही रहा। फर्क जागरूकता का है, चैतन्य होने का है, तीसरी
आँख खुलने का है, ग्यारहवीं दिशा में उतरने का है। भीतर का तत्त्व जागृत होता है, तो आदमी के सामने चाहे अच्छे से अच्छा या बुरे से बुरा निमित्त क्यों न आ जाए, आदमी कभी उससे प्रभावित नहीं होगा। क्रोध और अहंकार दोनों में ही व्यक्ति की व्यथा है, पीड़ा है। मानव कमजोरियों का पुतला है। बुराई सुनकर उसे क्रोध आता है और तारीफ सुनकर अहंकार पनपता है। व्यक्ति पर दोहरी मार पड़ती है। बाबा का मार्ग जागरूकता का मार्ग है, क्रोध और अहंकार दोनों से उपरत होने का मार्ग है।
बाबा कहते हैं- माया से ऊपर उठो। 'अति अचेत कछ चेतत नाहीं पकरी टेक हारिल लकरी।' ऐसा नहीं कि अब तक चेताने वाले लोग नहीं मिले। चेताने वाले तो बहुत मिले मगर चेते नहीं। माया की गांठ इतनी मजबूत है कि जो खुल ही नहीं पाती; ठीक उसी तरह जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी को पकड़ लेता है तो छोड़ता नहीं है। चाहे उसके छुड़ाने की चेष्टा में आग ही क्यों न लगा दो, वह लकड़ी को नहीं छोड़ता है।
__ आदमी सोचता है, संसार में मौजूद चीजों का आनन्द ले लूं, संन्यास तो बाद में लेना ही है। धन-यौवन, पुत्र-पत्नी का आनन्द उठा लूं, बाद में इनसे मुक्त हो जाऊंगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। मृत्यु
हम पंछी आकाश के/४२
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