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हम पंछी आकाश के
मेरे प्रिय आत्मन्!
आज हम उस ब्रह्म-कमल की ओर अपनी निगाह उठा रहे हैं, जो मानसरोवर में ही खिला करता है। रेगिस्तान की तपती हुई बालू के बीच कोई महकता फूल खिल जाए, तो यह मरुस्थल का सौभाग्य कहलाएगा। मरुस्थल की सार्थकता मरुस्थल बने रहने में नहीं, मरूद्यान हो जाने में है।
व्यक्ति की असली साधना यही है कि जिसे लोग तुच्छ माटी समझते हैं, उसी माटी से अमृत कलश का निर्माण कर ले। जिसे लोग गंदगी कहकर हेय समझते हैं, वही चीज मिट्टी में डालने पर फूल खिला देती है; फूल सुवास देने लगते हैं। जीवन का यह एक सहज विन्यास है कि माटी ही फूल बनती है और गन्दगी ही माटी में परिणत हो सुगन्ध बन जाती है। सुगन्ध कहीं ओर से नहीं आती, का ही रूपान्तरण है ।
सुगन्ध गंदगी
मैं सबको चेतना के उस शिखर पर ले जाना चाहता हूँ, जहां से बसंत की ठण्डी हवाएं, आनन्द का हिमालयी शीतल समीर हम तक
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सो परम महारस चाखै/३१
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