Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 37
________________ है-आजादी! मेरी शहजादी!! आजादी! आजादी!! आदमी आजादी की बातें तो बहुत करता है मगर आजाद होना नहीं चाहता। बाबा आनन्दघन को सुनना उन्हीं के लिए सार्थक हो सकता है, जो वास्तव में आजाद होने की गहरी मुमुक्षा अपने भीतर रखते हैं। बाबा का मार्ग तो आत्म-स्वतन्त्रता का मार्ग है। यह मार्ग कोई भरोसे या श्रद्धा का नहीं वरन् अनुभव और प्रयोग का मार्ग है। उनके पद कोई सिद्धांत या शास्त्र नहीं हैं कि जिनकी पूजा की जाए, जिन पर चढ़ावा चढ़ाया जाए। उनके पद तो प्रयोग की निष्पत्तियां हैं। साधना के मार्ग पर चलते वक्त जो अनुभव की निष्पत्तियां हुईं, वही उनके पदों में गहरा आई हैं। उनका मार्ग अनुभव का मार्ग है। वे क्रियाकाण्डी संत नहीं हैं। यहां अनुभव चाहिए, केवल अंधविश्वास से काम नहीं चलेगा। वैसे भी अब तक भरोसा कर-कर के आपने क्या उपलब्ध कर लिया? कितना भरोसा किया, विश्वास किया? जब तक विश्वास अनुभव दशा से न गुजरे, तब तक विश्वास अंधा होता है। तब आप परमात्मा के नाम की मालाएं तो खूब जपेंगे लेकिन मन में संदेह होगा कि परमात्मा है भी कि नहीं। ईश्वर, ईश्वर नहीं वरन् शब्द-जाल, पंडित-पादरियों का पेटभराऊ माया-जाल मात्र होगा अगर अनुभव की कोई किरण अन्तर-हृदय में न उतरी हो तो। अनुभव की किरण स्वयं में उतर गई, तो वह ईश्वर वास्तव में ईश्वर होगा। मोक्ष केवल शब्द मात्र बन कर रह जाएगा अगर मुक्ति का कोई रसास्वाद नहीं लिया है। मरने के बाद मोक्ष उन्हीं को उपलब्ध होगा जो जीते जी मुक्ति का रसास्वाद कर लेते हैं। जो जीते जी मुक्ति के आनंद से वंचित रहा, मृत्यु उसे आनंद का उत्तराधिकारी कैसे बना पाएगी? ___ अनुभव प्राथमिक है। श्रद्धा और भरोसा तो अनुभव के सहचर हैं। श्रद्धा तो अनुभव की परछाई की भांति अपने-आप चली आती है। उसे लाना नहीं पड़ता। पहले से विश्वासों को आरोपित कर रखा है, तो वह विश्वास मानो, बेसाखी के सहारे चलना हुआ। अनुभव की दशा से गुजर जाओ, तो तुम्हारी बात को कोई कितना भी क्यों न काटे, तुमने जो अनुभव किया है, तुम उस पर अडिग रहोगे। स्थिर चित्त, स्थितप्रज्ञ रहोगे। सो परम महारस चाखै/३७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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