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भ्रांति है। काले भी अच्छे हो सकते हैं और गोरे भी बुरे हो सकते हैं । परहेज रखना है तो काले दिल वालों से रखें, काले रंग वालों से नहीं । लोग रंग-रूप देखकर मोहित हो जाते हैं । उनके लिए हृदय का सौन्दर्य तो मानो सौन्दर्य है ही नहीं। पहले शादी-विवाह में लोग यह देखते थे कि लड़के-लड़की में कैसे संस्कार हैं, कैसा कुल है। अब तो गोरा रंग देखा और रीझ उठे । गोरे को क्या चाटो अगर दिल काला हो ? रूप का सौन्दर्य तो कुछ दिन लुभाता है। जीवन कुछ दिन का नहीं है । जीवन तो सौ साल जीना है । ऐसा साथी चुनो, जो हृदय से सुन्दर है, जिसका अन्तर्-मन पवित्र है
जो रंग के चक्कर में गया, सो गया। जो रंग के पार झांकने का सामर्थ्य रखता है, सो सुखी हुआ। हमें रंग पर नहीं गुणवत्ता पर, प्रतिभा पर ध्यान देना चाहिये । गुणी सुहायेगा, रूपी सताएगा ।
मैंने देखा, एक लड़की काले आदमी से बड़ी नफरत करती है । उसे काले आदमी के हाथ से पानी पिलाया जाये, तो वह उस पानी को नहीं छुएगी । यह गलत है । अपने में रूप का अभिमान है । ऐसा नहीं होना चाहिये। तुम भी तो काली हो सकती थी । चेहरा भले ही तुम्हें अपना सुन्दर लगे पर तुम्हारे विचार सुन्दर नहीं हैं। अपनी दृष्टि सुन्दर बनाओ, अपने विचार सुन्दर बनाओ। तुम्हारा कायाकल्प हो जाएगा । तुमसे सौन्दर्य के निर्झर झरेंगे। तुम सौन्दर्य की प्रतिमा कहलाओगी, रूप-रंग के साथ अगर अपने विचारों को, दिलोदिमाग को भी सुन्दर बनाओ ।
'जाति न पांति' जात-पांत का भेद कैसा? मानव-मानव के बीच कैसा फासला ? गधे घोड़ों, कुत्ते -पिल्लों से प्रेम और इन्सान के प्रति नफरत ?
अभी कुछ समय पूर्व एक जैनाचार्य एक हरिजन के बाड़े में गए और वहां अपना प्रवचन दिया। साधुवाद ! पर सारे हिंदुस्तान में हो-हल्ला मच गया । अफवाह फैल गई कि वे किसी हरिजन के घर आहार लेने गए। समाज के लोग पीछे पड़ गए कि या तो अपना अपराध स्वीकार कर प्रायश्चित करो, नहीं तो आपको झोली-डंडा छोड़ना पड़ेगा। जिन्होंने ऐसा कहा, वे महावीर के पुजारी नहीं महावीर - भंजक हैं । वे जैन तो क्या, इंसानियत के धरातल से भी नीचे हैं ।
सो परम महारस चाखै/२२
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