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तीसरा पत्र
स्मरण-शक्ति का महत्व
प्रिय बन्धु !
मैंने पिछले पत्र में मन और उसके कार्यों के सम्बन्ध में पूछे गये प्रश्नो के उत्तर दिये थे। उनमे स्मृति किसे कहा जाय यह भी स्पष्ट किया गया। अब शेष प्रश्नों के उत्तर इस पत्र मे दिये जा रहे हैं।
प्रश्न- स्मरण शक्ति की क्या महत्ता है ?
उत्तर-स्मरण शक्ति की महत्ता योगीश्वर श्रीकृष्ण के शब्दो मे नीचे के अनुसार है । उन्होने गीता में कहा है
"स्मृतिभ्र शाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ।"
स्मृति का भ्र श होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है, बुद्धिनाश होने पर पूरा पतन होता है । आधुनिक मानस-शास्त्रियो का अभिमत भी ऐसा ही है । प्रो० लाई सेट ने कहा है--"आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक इन तीन शक्तियो के क्षीण होने का प्रथम कारण स्मृति का अभाव है।" प्रो. केन का कथन है-“समग्र शक्तियो मे स्मरण शक्ति अद्भुत है । वह न हो तो मनुष्य एक क्षुद्र जन्तु के समान बन जाये और जीवन के सर्वोत्कृष्ट आनन्दो से तथा प्रगति से वचित हो रहे ।" ग्रीक लोगो ने स्मृति को स्वर्ग और पृथ्वी की पुत्री तथा साहित्य, सगीत एव कला पर अधिकार भोगने वाले नवभ्युजीज की माता मान कर उसकी अपूर्वता जाहिर की है । तत्त्वज्ञो ने उसे 'आत्मा की अन्नपूर्णा', 'विचारो की अदृश्य खान', 'समग्र क्रियानो की अधिष्ठात्री,' 'प्रगति की माता' आदि भाव भरे विशेषणो से सम्बोधित किया है।