Book Title: Sindur Prakar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakasham Samiti

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Page 8
________________ विविध प्रकार के छन्दों में बनाया गया है । सिन्दूर प्रकर इस पद्य से शुरू होने के कारण सिन्दूर प्रकर के नाम से विशेष प्रख्यात है। कितनेक आचार्यश्री की कृति १०० श्लोक में हाने से आचार्यश्री 'सोम' नाम लगाकर 'सोमशतक' के नाम से भी पहिचानते हैं तथा अनेक विषय पर सूक्ति होने से 'सूक्तिमुक्तावली' भी कही जाती है। (४) परिवार और विहार श्री सोमप्रभसूरिश्वरजी का शिष्य संप्रदाय कितना बड़ा था इसका स्पष्ट खुलासा नहीं मिलता, तथापि यह मालूम होता है कि अनेक सुविहित आचार्य और संविग्न मुनिवर आप के आश्रित थे। आपके समय में चैत्रवाल गच्छीय श्रीभुवनचन्द्रसूरि भी एक प्रतिष्ठित आचार्य थे, इनके साथ आपका अति घनिष्ठ संबंध था। आचार्यश्री का विहार और आपके द्वारा सामाजिक, धार्मिक आदि कार्य के विषय में एतिहासिक पूर्ण साधन न मिलने के कारण निश्चय करना कठिन है तथापि गुर्वावली आदि से यह जाना जा सकता है कि आप का विहारस्थल गुजरात, मालवा, मेवाड़, सौराष्ट्र, मारवाड़ आदि प्रान्तों में अधिकांश था। - (५) स्वर्गवासादि का अनुमान – आचार्य श्री सं. १२८२ में उपाध्याय देवप्रभ, श्री जगच्चन्द्रसूरि, कर्मग्रन्थ के निर्माता श्री देवेन्द्रसूरि आदि बहुत मुनिवर के परिवार सह 'श्री भीलडीया पार्श्वनाथ तीर्थ, की यात्रार्थे पधारे थे। इसी वर्ष में आबू (देलवाड़ा) पर श्री भुवनचन्द्रसूरिजी के उपदेश से महाराजा वीरधवल के मन्त्री वस्तुपाल तेजपाल का बनाया हुआ श्री नेमिनाथ प्रभु के मन्दिर की प्रतिष्ठा होने के कारण श्री भुवनचन्द्रसूरिजी की प्रेरणा से मन्त्री वस्तुपाल तेजपाल ने आपको इस अवसर पर पधारने की अत्याग्रहभरी प्रार्थना की। एक जनश्रुति यह भी है की इस समय में प्राचीन नगर श्रीमाल आधुनिक भिनमाल अच्छा उन्नत और वैभवशाली था। जिस पर मुसलमानों के आक्रमण हो रहे थे, यहाँ की प्रजा ने एकत्रित हो इस आक्रमण को हटाने के लिए पाटण के राजा से सहायता लेनी उचित समझी और इस कार्य के लिए प्रजाजन की तरफ से मुख्य नागरिक, सेठ, साहूकार श्रीमाल, ब्राह्मण, राजपूत आदि आदि नेता नियत कर पाटण की ओर भेजे गये। रास्ते में भीलडिया तीर्थ पर श्री सोमप्रभसूरि से इनकी भेंट हो गयी, आगन्तुक महाशयों में से बहुत से आपके पूर्व परिचित थे। अतः उन्होंने अपनी दुःखद कहानी आद्योपान्त आपश्री को निवेदन की। यह संभव है कि इस दुःखद घटना से आचार्यश्री का मन अतीव दुखित हुआ हो, कारण कि यह स्थान परम पवित्र भगवान् महावीर स्वामी, गौतमस्वामी आदि अनके ऋषि मुनि की पवित्रतात्माओं की स्पर्शना से परम पवित्र माना जाता है जो कि जैन, वैष्णव

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