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सकलकीर्ति रास में उनको विस्तृत जीवन गाथा है, उसमें स्पष्ट रूप से सम्वत् १४४३ को जन्म एवं सम्वत् १४६९ में स्वर्गवास होने को स्वीकृत किया है।
तत्कालीन सामाजिक अवस्था ---
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भट्टारक सकलकीति के समय की सामाजिक स्थिति अच्छी नहीं थी । समाज में सामाजिक एवं धार्मिक चेतना का अभाव था । शिक्षा की बहुत कमी थी । साधुग्रों का प्रभाव था । भट्टारकों के नग्न रहने की प्रथा थी । स्वयं भट्टारक सकलकीर्ति भी नग्न रहते थे। लोगों में धार्मिक श्रद्धा बहुत थी । तीर्थ यात्रा बड़े बड़े संघों में होती थी । उनका नेतृत्व करने वाले साधु होते थे । तीर्थं यात्राएं बहुत लम्बी होती थीं तथा वहां से सकुशल लौटने पर बड़े-बड़े उत्सव एवं समारोह किये जाते थे । भट्टारकों ने पंच कल्याणक प्रतिष्ठाओं एवं अन्य धार्मिक समारोह करने की अच्छी प्रथा डाल दी थी । इनके संघ में मुनि प्राधिका, श्रावक आदि सभी होते थे । साधुयों में ज्ञान प्राप्ति की काफी अभिलाषा होती थी, तथा संघ के सभी साधुनों को पढ़ाया जाता था । ग्रन्थ रचना करने का भी खूब प्रचार हो गया था । भट्टारक गरण भी खूब ग्रन्थ रचना करते थे । वे प्रायः श्रपने ग्रन्थ भावकों के आग्रह से निबद्ध करते रहते थे । व्रत उपवास की समाप्तिपर श्रावकों द्वारा इन ग्रन्थों की प्रतियां विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों को भेंट स्वरूप दे दी जाती थीं। भट्टारकों के साथ हस्तलिखित ग्रंथों के बस्ते के बस्ते होते थे । समाज
स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी और न उनके पढ़ने लिखने का साधन था | व्रतोद्यापन पर उनके आग्रह से ग्रंथों की स्वाध्यायार्थ प्रतिलिपि कराई जाती थी और उन्हें साधु सन्तों को पढ़ने के लिये दे दिया जाता था ।
साहित्य सेवा -
साहित्य सेवा में सकलकीर्ति का जबरदस्त योग रहा। कभी कभी तो ऐसा मालूम होने लगता है जैसे उन्होंने अपने साधु जीवन के प्रत्येक क्षरणका उपयोग किया हो । संस्कृत, प्राकृत एवं राजस्थानी भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था। वे सहज रूप ही काव्य रचना करते थे, इसलिये उनके मुख से जो भी वाक्य निकलता था वही काव्य रूप में परिवर्तित हो जाता था । साहित्य रचना की परम्परा कलकीर्ति ने ऐसी डाली कि राजस्थान के बागड़ एवं गुजरात प्रदेश में होने वाले अनेक साधु-सन्तों साहित्य की खूब सेवा की तथा स्वाध्याय के प्रति जन साधारण की भावना को जागृत किया । इन्होंने पने अन्तिम २२ वर्ष के जीवन में २७ से अधिक संस्कृत रचनाएं एवं राजस्थानी रचनाए निबद्ध की थीं।
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राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों की जो अभी खोज हुई है उनमें हमें अभी तक निम्न रचनाए उपलब्ध हो सकी हैं ।