Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 18
________________ सदाशिवेन्द्रने दयापूर्ण दृष्टिसे बार बार उसे देखते हुए उसपर अनुग्रह किया। एक समय उस ब्रह्मचारीको रखनाथजीकी सेवाकी अभिलाषा हुई। उसने अपनी इच्छा योगिराजपर प्रगट की। मौनी सदाशिवेन्द्रने इशारेसे उससे कहा-क्षण भरके लिए आंखें बन्द करो। उसने आदेशानुसार वैसा ही किया। थोड़ी देरमें उसने आँखें खोलकर देखा तो अपनेको श्रीरङ्गनाथके सम्मुख पाया और पासमें श्रीसदाशिवेन्द्रको देखा। उसके पश्चात् कुछ ही क्षणों में योगिराज सदाशिव अन्तर्हित हो गये। उनके अदर्शनसे ब्रह्मचारीको बड़ा दुःख हुआ। उसने उनकी खोजमें समीपवर्ती झाड़ियां, देवालय आदि स्थान छान डाले, पर वे न मिले । फिर तो वह पैदल ही लम्बे मार्गको लाँघकर थोड़े ही दिनोंमें करूरमें आ पहुँचा। वहाँपर समाधिस्थ योगिराजके दर्शन कर बड़े भक्ति-भावसे उनके चरणों में पड़कर उसने सारा वृत्तान्त कहा। सदाशिवेन्द्रको भी उसपर बड़ी दया आई। उन्होंने बालूमें अक्षर लिखकर उस ब्रह्मचारीको मन्त्रोपदेश दिया । तुरन्त ही उसके हृदयमें मन और रहस्यसहित सब वेद और सम्पूर्ण विद्याएँ आविर्भत हो गई। वह ब्रह्मचारी महापौराणिक विद्वान् हो गया । राजा-महाराज उसका बड़ा सम्मान करते थे और उसने पुराण-प्रवचन द्वारा अतुल सम्पत्ति उपार्जित की। ___एक समयकी बात है कि देहाभिमानशून्य तथा परमानन्दमें निमग्न योगिराज घूमते-घूमते किसी यवनराजके अन्तःपुरमें चले गये । असूर्यपश्या रानियों के सामने अवधूतवेषसे इधर उधर घूम रहे उनको देखकर क्रोध-परिपूर्ण यवनराजने उनकी एक भुजा काट दी। सदाशिवेन्द्र भुजाका कटना न जानकर स्वस्थकी नाई जैसे आये थे वैसे ही वहांसे अन्यत्र चले गये। उनकी वैसी मानसिक स्थिति देखकर यवनराजको बड़ा आश्चर्य हुआ। यह कोई योगी महात्मा है। मैंने इसका हाथ काट डाला, फिर भी यह प्रसन्नवदन होकर घूमता है । इसको प्रसन्न किये बिना सुख प्राप्त नहीं हो सकता। मैं धनके मदसे मत्त हूँ तथा सदसदविवेकसे शून्य हूँ, यों अपनी निन्दा कर बड़े शोकके साथ योगिराजके पीछे हो लिया। बहुत दिनों तक शीत, आतप आदिसे उत्पन्न खेदको कुछ न गिन कर छायाकी नाई अपने पीछे चल रहे उसको देख कर दयालु योगिराजने इशारेसे कहा-क्यों तुम मेरे पीछे चल रहे हो ? उसने अपने महापराधके लिए क्षमा मांगी। उन्होंने इशारेसे पूछा-कैसा अपराध ! उसने रोते हुए कहा-महाराज, मैंने आपकी एक भुजा काट दी है। उसके कथनके पश्चात् ख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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