Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 102
________________ द्वितीय स्तचक ] भाषानुवादसंहिता अन्ये तु नाऽर्थसत्तामपेक्षते तत्क्रिया किन्तु । सत्यं वाऽसत्यं वा तत् तत्स्वरूपमात्रमिति प्राहुः || ३९ ॥ मरुपयसि जात्यभावात् पानाद्यर्थक्रिया तु नेत्येके । अस्त्येव जातिरर्थक्रियाऽपि काचिन्न चाऽखिलेत्यन्ये ॥ ४० ॥ ७७ पुरुषेणाऽध्यस्तं तमः तं प्रति घटाद्यावरणाद्यर्थक्रियासमर्थं दृष्टमिति निदर्शनपूर्वकं पूर्वोक्तमेव मतमनुसरतां मतमाह – सालोक इति ॥ ३८ ॥ अर्थक्रिया प्रयोजकत्वं न सत्यत्वम्, अर्थक्रियानुत्पत्तिदशायां घटादेरसत्यत्वप्राप्तेः । किन्तु सत्यं वाऽसत्यं वा तत्तद्व्यक्तिमात्रमिति मिथ्यात्वेऽप्यर्थक्रियाकारित्वसम्भवादिति मतान्तरमाह - अन्ये त्विति ॥ ३९ ॥ नन्वेवं सति मरुमरीचिकोदकेनाऽपि पानाद्यर्थक्रिया प्रसङ्ग इत्याशङ्कय तत्र तोयत्वजात्यभावान्नैवमिति तत्वशुद्धिकारादिमतेनोत्तरमाह - मरुपयसीति । अत्र तोयत्वभानं तु संस्कारबलेनेति भावः । अन्यथाख्यात्यनभ्युपगमात्तोयत्वजातीयत्वानुसंधानं विना तोयार्थिनस्तत्प्रवृत्त्ययोगाच्च तोयत्व जा तिरस्त्येव । तल्लिप्सया धाव - द्वारा कल्पित ( अध्यस्त ) अन्धकार उस कल्पक पुरुषके प्रति घटावरणादि अर्थक्रिया में समर्थ दीखता है, यों दृष्टान्तपूर्वक अपरमतवाले उपर्युक्त शङ्काका समाधान करते हैं ।। ३८॥ 'अन्ये तु ' इत्यादि । अर्थक्रियाके प्रति वस्तुका सत्यत्व प्रयोजक नहीं है; अर्थात् अर्थक्रिया में वस्तुकी सत्यता अपेक्षित नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेपर अर्थक्रियाकी अनुत्पत्तिदशा में वस्तुमें असत्यत्वकी प्राप्ति होगी । किन्तु सत्य हो या असत्य, केवल तत्तद्व्यक्तिमात्र के स्वरूपको ही अर्थक्रियाका प्रयोजक मानना चाहिये, अतः वस्तुके मिथ्या होनेपर भी अर्थक्रियाकारित्वका संभव है; ऐसा अन्य कहते हैं ॥ ३९ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat जब अर्थक्रिया के प्रति वस्तुसत्ताको प्रयोजक नहीं मानेंगे तो मरुमरीचिका के जलसे भी पानादि - क्रियाका प्रसङ्ग आ पड़ेगा; ऐसी शङ्का करके तत्वशुद्धिकार के मतसे समाधान करते हैं - 'मरुपयसि' इत्यादिसे । कई का कहना है कि मरुजल में जलत्व जातिके न होनेसे पानादि अर्थक्रिया नहीं होती । उसमें जो जलत्वका भान होता है, वह संस्कार के बलसे होता है । अन्य मतवाले कहते हैं कि जब अन्यथाख्याति मानते नहीं हैं, तब जलत्व जातीयताका अनुसन्धान हुए बिना जलार्थी की उसमें प्रवृत्ति नहीं हो सकती, अतः यहाँ भी जलत्वजाति है ही । और उस जल पाने की इच्छासे धावनादि ( दौड़ना www.umaragyanbhandar.com

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