Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 133
________________ सिद्धान्तकल्पवल्ली [मुक्तका ब्रह्मभाववाद बिम्बेश्वरवादे त्वीश्वरताप्राप्तिर्विमुक्तस्य । आसर्वमुक्त्यमुष्मिन् बिम्बत्वापह्नवायोगात् ॥ १६ ॥ परमार्थतस्तु मुक्तः सर्वेशत्वादिधर्मनिर्मुक्तम् । विगलितसर्व विकल्पं विमलं ब्रह्मैव केवलं भवति ॥ १७ ॥ अविद्यायामन्तःकरणे वा चित्प्रतिबिम्बो जीवः, बिम्बभूतस्त्वीश्वर इति मते मुक्तम्य यावत्सर्वमुक्ति परमेश्वरभावापत्तिरिष्यते । यथाऽनेकेषु दर्पणेष्वेकस्य मुखस्य प्रतिविम्बे सति एकदर्पगापनये तत्प्रतिबिम्बो बिम्बभावेनैवाऽवतिष्ठते, न तु मुखमात्ररूपेण । तदानीमपि दर्पणान्तरसन्निधानप्रयुक्तम्य मुखे बिम्बत्वस्याऽनपायात् । तथा एकस्य ब्रह्मचैतन्यस्याऽनेकेपूराधिषु प्रतिबिम्बे सति विद्योदयेनैकोपाधिलये तत्पति. बिम्बस्य बिम्वभावेनाऽजस्थानमुचितम् , न तु शुद्धरूपेण । तदानीमप्यविद्यान्तरस्य सत्त्वेनेवरे तस्पयुक्तबिम्बत्वस्याऽपहोतुमशक्यत्वादिति समाधानान्तरमाह-बिम्बेति अमुस्मिन् ईश्वर इत्यर्थः । नन्वेवं ज्ञानस्येश्वरभावापत्तिफलकत्वे तस्य दहराद्युपासनाविशेषप्रसङ्ग इति चेत्, न; ज्ञानस्याऽज्ञाननिवृत्त्यानन्दावाप्तिफलकस्वेन विशेषसत्त्वादिति भावः ॥१६॥ मुक्तस्य सर्वमुक्तिपर्यन्तमीश्वरभावापत्तिरपि बद्धपुरुषान्तरदृष्ट्या । वस्तुतस्तु 'बिम्बेश्वर०' इत्यादि । अविद्यामें अथवा अन्तःकरणमें जो चित्प्रतिबिम्ब है, यह जीव है और जो बिम्बभूत है वह ईश्वर है, इस मतमें मुक्तकी, जबतक सबकी मुक्ति न हो तबतक परमेश्वरभावापात्त इष्ट है। जैसे अनेक दर्पणोंमें एक मुखका प्रतिबिम्ब पड़ रहा हो, वहाँ एक दर्पणको हटा लेनेसे उस दर्पणका प्रतिबिम्ब बिम्बभावसे ही अवस्थित रहता है, न कि मुखमात्ररूपसे, क्योंकि उस समय भी दूसरे दर्पणोंका संनिधान होने के कारण मुखमें बिम्बत्व तो ज्योंका त्यों है ही, वैसे ही एक ब्रह्मचैतन्यका अनेक उपाधियोंमें प्रतिबिम्ब होनेपर भी विद्योदयसे जब एक उपाधिका लय होगा तब उस प्रतिबिम्बका बिम्बभावसे अवस्थान उचित है, शुद्धरूपसे नहीं, क्योंकि उस समय भी अन्य अविद्याएँ तो हैं, अतः उन अविद्याओंसे होनेवाला बिम्बभाव ई घरमें बना ही रहता है अतः उसका निरास नहीं कर सकते। यदि ज्ञानका फल ईश्वरभावापत्ति मानें, तो उसमें दहरादि उपासनाविशेषका प्रसंग आवेगा, ऐसी शङ्का हो तो कहते हैं कि ज्ञानका तो अज्ञाननिवृत्ति और परमानन्दावाप्ति फल है; अतः उपासनाकी अपेक्षा ज्ञानमें विशेष होनेसे पूर्वोक्त शङ्का निरवकाश है।॥ १६ ॥ मुक्तमें सर्वमुक्तिपर्यन्त ईश्वरभावापत्ति भी अन्य बद्ध पुरुषोंकी दृष्टिसे कही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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