Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 115
________________ सिद्धान्तकल्पवल्ली [श्रवणाधिकारवाद ४. श्रवणाधिकारवादः संन्यासिन एव परं श्रवणाद्यधिकारिता मुख्या। गौणी राजन्यादेर्जन्मान्तरसंभवत्फलेत्यपरे ॥ ८॥ ___w.xxxmarrrrr'अधिकारिविशेषस्य ज्ञानाय ब्रामणग्रहः । 'न संन्यासविषिर्यस्माच्छ्रतौ क्षत्रियवैश्ययोः ॥ इति वार्तिकोक्तेश्च ब्राह्मणस्यैव संन्यासेऽधिकारः, न क्षत्रियवैश्ययोः । तयोस्तु संन्यासं विनैव श्रवणाधिकारितेति मतान्तरमाह-ब्राह्मणजातेरित्यादिना ॥७॥ _ 'ब्रह्मसंस्थोऽमृतत्वमेति' इति श्रुतेः 'आ सुमेरा मृतेः कालं नयेद्वेदान्तचिन्तया' इति स्मृतेश्च अनन्यव्यापारतालक्षणब्रह्मसंस्थाशालिसंन्यासिन एव श्रवणाधिकारिता मुख्या। स्वाश्रमधर्मव्यग्रक्षत्रियादेरनन्यव्यापारतासम्भवात् जन्मान्तरीयविद्याप्रापिका श्रवणाघधिकारिता गौणीति मतान्तरमाह-संन्यासिन एवेति ॥८॥ 'अधिकारिविशेषस्य ज्ञानाय ब्राह्मणग्रहः । न संन्यासविधिर्यस्माच्छुतौ क्षत्रियवैश्ययोः ।।' (चूंकि श्रुतियोंमें संन्यासके अधिकारिविशेषका बोधन करनेके लिए सर्वत्र ब्राह्मणपदका ही ग्रहण किया गया है; अतः क्षत्रिय और वैश्यको संन्यासका विधान नहीं है) इस प्रकार वार्तिककारका वचन है, अतः ब्राह्मण ही संन्यासका अधिकारी है । क्षत्रिय और वैश्य तो संन्यासके बिना ही श्रवणादिके अधिकारी हैं ॥७॥ 'संन्यासिन' इत्यादि। ब्रह्मसंस्थोऽमृतत्वमेति' (ब्रह्ममें निष्ठावाला ही अमृतत्वमोक्ष प्राप्त करता है) इस श्रुतिसे और 'आसुप्तेरामृतेः कालं नयेद् वेदान्तचिन्तया' (नित्य सुषुप्तिपर्यन्त और मरणपर्यन्त वेदान्तके चिन्तन द्वारा कालका यापन करे) इस स्मृतिवाक्यसे अनन्यव्यापार-प्रवृत्त्यन्तरसे रहित-ब्रह्मसंस्थावान् संन्यासी ही श्रवण आदिमें मुख्य अधिकारी है, ऐसा प्रतीत होता है, अतः अपने अपने आश्रमधर्मोके अनुष्ठानमें व्यग्र रहनेवाले क्षत्रियादिमें अनन्यव्यापारताका संभव न होनेके कारण श्रवण आदिमें उनकी जन्मान्तरमें विद्याप्राप्ति करानेवाली गौणी अधिकारिता है, ऐसा मतान्तर है ॥ ८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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