Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 122
________________ तृतीय स्तबक ] भाषानुवादसहिता ९७ mwww ९. अज्ञाननिवर्तकवादः अथ चाक्षुषवृत्याऽपि ब्रह्माज्ञान निवर्ततामिति चेत् । अत्राऽऽचार्याश्चाक्षुषवृत्तिश्चिद्गोचरैव नेत्याहुः ॥ २१ ॥ चिद्विषयिण्यपि सा न ब्रह्माज्ञानस्य वारिका किन्तु । वेदान्तजैव वृत्तिः श्रुतिनियमादृष्टसहकृतेत्यपरे ॥ २२ ॥ नन्वेवं घटादिविषयचाक्षुषवृत्त्या घटाद्यधिष्ठानब्रह्मचैतन्याभेदाभिव्यक्त्या ब्रह्मावारकमूलाज्ञानं कुतो न निवर्तते, घटाद्याकारवृत्तेरप्यभिव्यकचिदंशे मूलाज्ञानसमानविषयकत्वसत्त्वादिति शङ्कते-अथ चाक्षुषेति । न चाक्षुषवृत्तिश्चैतन्यविषयिणी, 'न संदृशे तिष्ठति रूपमस्य न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम्' इत्यादिश्रुत्या चैतन्यस्य परमाणुवच्चक्षुराद्ययोग्यत्वादिति मतेन परिहरति-अत्रेत्यादिना ॥ २१ ॥ अस्तु घटादिचाक्षुषवृत्तिरपि चिद्विषयिणी, तथापि सा न ब्रह्मावारकमूलाज्ञाननिवृत्तिहेतुः । किन्तु श्रवणनियमादृष्ट सहकृतवेदान्तवाक्यजन्यवृत्तिरेवेति मतान्तरमाह-चिद्विषयिणीति ॥ २२ ॥ 'अथ' इत्यादि । शङ्का करते हैं कि यदि स्फुटचित्त्वको ही अपरोक्षताका प्रयोजक मानते हो, तो घटादिविषयक चाक्षुषवृत्तिसे घटायधिष्ठान ब्रह्मचैतन्यकी अभिव्यक्ति होनेके कारण उससे भी ब्रह्मके आवारक मूलाज्ञानकी निवृत्ति होनी चाहिये, क्योंकि घटाद्याकारवृत्तिमें भी चिदंशके अभिव्यक्त होनेपर मूलाज्ञानसमानविषयकत्व है ही। इस शङ्काका समाधान करते हैं-'अत्रा०' इत्यादिसे । इस विषयमें कुछ आचार्योंका यह कहना है कि चैतन्यको विषय करनेवाली चाक्षुषवृत्ति ही नहीं होती, क्योंकि 'न संदृशे तिष्ठति रूपमस्य न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम्' ( इसका रूप दृष्टिगोचर नहीं होता और न कोई इसको चक्षुसे देखता है ) इत्यादि श्रुतियोंसे चैतन्यको परमाणुके समान चक्षुरादि इन्द्रियोंका अविषय ही माना है ॥ २१ ॥.. चिद्विषयिण्यपि' इत्यादि । घटादिविषयक चाक्षुषवृत्ति चिद्विषयिणी भले ही हो; तथापि वह ब्रह्मके आवारक मूलाज्ञानकी निवृत्तिमें हेतु नहीं होती; क्योंकि श्रवणनियमादृष्टसे सहकृत जो वेदान्तवाक्यजन्य वृत्ति है, वही मूलाज्ञानकी निवर्त्तक होती है, ऐसा अपर मानते हैं ॥ २२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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