Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 129
________________ सिद्धान्तकल्पवल्ली [ मुक्तिस्वरूपवाद wwwwwwwwwwwwww w ३. मुक्तिस्वरूपवादः नन्वज्ञाननिवृत्तेः क्षणिकत्वान्मुक्तिरस्थिरा स्याचेत् । ब्रह्मानन्दस्फूरणं दुःखाभावश्च मुक्तिरित्याहुः ॥ ७ ॥ ननु तस्याः क्षणिकत्वे मुक्तिन स्थिरपुमर्थ इति मैवम् । सुखदुःखाभावान्यतरत्वाभावान हि तथेत्याहुः ॥ ८॥ उत्पन्नोऽयं षटः नोत्पद्यत इति उत्पत्तेरवर्तमानत्ववत् निवृत्त्यनन्तरमपि द्वितीयक्षणे निवृत्तोऽयं न निवर्तते इति व्यवहारेण निवृत्तरप्यवर्तमानत्वेन क्षणिकभावविकारविशेषरूपत्वम् । तथा च अविद्यानिवृत्तिरात्मज्ञानोदयानन्तरक्षणवर्तिनी भावविक्रियेति न कश्चिद्दोष इति मतान्तरमाह-अद्वैतेति ॥ ६ ॥ नन्वेवमविद्यानिवृत्तेः क्षणिकत्वे मोक्षस्य स्थिरपुरुषार्थत्वं न स्यादित्याशय नाऽविद्यानिवृत्तिः स्वतः पुरुषार्थः, तस्याः सुखदुःखाभावान्यतरत्वाभावात् । किन्तु अखण्डानन्दस्फुरणं संसारदुःखोच्छेदश्च । तदुपयोगितया च तस्यास्तत्त्वज्ञानसाध्यत्वमुपेयत इति केषांचिन्मतेन परिहरति-नन्विति ॥ ७ ॥ ___ एतच्छ्रोकार्थ एव पुनः श्लोकान्तरेणोच्यते-ननु तस्या इति ॥ ८ ॥ समकालीन मानकर उसको क्षणिक भावविकाररूप मानते हैं अर्थात् यह अविद्या निवृत्ति भले ही अनिर्वचनीया हो; तथापि उपादानभूत अविद्यालेशका प्रसङ्ग नहीं आता, क्योंकि जैसे उत्पत्तिके द्वितीय क्षणमें 'यह घट उत्पन्न हुआ' 'उत्पन्न होता नहीं है' इस प्रकार उत्पत्ति अवर्तमान हो जाती है, वैसे ही निवृत्ति के अनन्तर द्वितीय क्षणमें 'यह निवृत्त हुआ' 'निवृत्त होता नहीं इस प्रकारके व्यवहारसे निवृत्तिमें भी अवर्चमानत्व अवगम होनेसे वह क्षणिक भावविकारविशेषरूप है । इसलिए अविद्यानिवृत्ति आत्मज्ञानोदयके अनन्तरक्षणवर्तिनी भावविक्रिया है, ऐसा माननेमें किसी दोषकी आपत्ति नहीं आती ॥६॥ 'नन्वज्ञाननिवृत्तः' इत्यादिसे । यो अविद्यानिवृत्तिको क्षणिक माननेसे मुक्ति कोई स्थिर पुरुषार्थरूप नहीं रहती, इस शङ्काके परिहारमें कहते हैं कि अविद्यानिवृत्ति कोई स्वतः पुरुषार्थ नहीं है, क्योंकि वह सुख या दुःखाभाव-इन दोनोंमें से कोई एक नहीं है, किन्तु अखण्डानन्द स्फुरण और दुःखोच्छेदरूप जो पुरुषार्थ है, उसमें उपयोगी है, अतः अविद्यानिवृत्तिमें तत्त्वज्ञानसाध्यत्व माना जाता है, ऐसा कई एक मानते है ।। ७ ॥ 'ननु तस्याः' इत्यादिसे । यदि अविद्यानिवृत्तिको क्षणिक मानोगे, तो मुक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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