Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ १०० सिद्धान्तं कल्पवल्ली अज्ञानमेव साक्षाज्ज्ञानान्नश्यति जगत्तु तन्नाशात् । जीवन्मुक्तिरपीत्थम विद्यालेशेन घटत इत्यन्ये ॥ २८ ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिवाजकाचार्य श्रीपरम शिवेन्द्रपूज्यपादशिष्य श्रीसदाशिवब्रह्मेन्द्रविरचितवेदान्तसिद्धान्तकल्पवल्ल्यां तृतीयः स्तबकः समाप्तः ॥ [ ब्रह्माकारवृत्तिनाशक वांद न तावद् अज्ञानात् सविलासाज्ञाननाशः, तथात्वे प्रारब्धस्याऽपि नाशग्रस्त - स्वेन जीवन्मुक्त्ययोगात् । किन्तु परस्परविरोधात् ज्ञानादज्ञानमात्रं नश्यति, प्रपञ्चस्तुपादाननाशात् । एवञ्च उपादानमन्तरेण कार्यस्थित्ययोगात् जीवन्मुक्तिसिद्धये प्रारब्धकर्मणा तच्छरीराद्युपादानाविद्यालेशनाशः प्रतिबध्यत इत्यविद्यालेशेन जीवन्मुक्तिरप्युपपद्यत इत्याशयेन मतान्तरमाह - अज्ञानमिति ॥ २८ ॥ इति श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीमत्परम शिवेन्द्रपूज्यपाद - शिष्य श्रीसदाशिवब्रक्षेन्द्र प्रणीत श्री वेदान्तसिद्धान्तकल्पवल्ली व्याख्यायां केसरवल्ल्याख्यायां तृतीयः स्तबकः ।। ज्ञानसे सविलास अज्ञानका नाश होता है, यों माननेपर प्रारब्ध भी नष्ट हो जायगा, ऐसी अवस्था में जीवन्मुक्ति नहीं हो सकेगी; अतः परस्पर विरोध होनेके कारण ज्ञानसे अज्ञानमात्रका नाश होता है और प्रपञ्च तो उपादानके नाशसे निवृत्त होता है, ऐसा मतान्तर दर्शाते हैं - ' अज्ञानमेव ' इत्यादिसे । ज्ञानसे साक्षात् अज्ञान ही निवृत्त होता है और जगत् तो उपादानके नाशसे निवृत्त होगा । एवञ्च उपादानकी स्थिति के बिना कार्यकी स्थिति नहीं हो सकती; अतः जीवन्मुक्तिकी सिद्धिके लिए प्रारब्धकर्म से तत् तत् शरीरादिके उपादान अविद्या लेशका नाश ( प्रतिबन्ध ) हो जानेके कारण अविद्यालेशसे जीवनमुक्ति हो सकती है; ऐसा अन्य कहते हैं ॥ २८ ॥ महामहोपाध्याय पण्डितवर श्रीहाथीभाईशा स्त्रिविरचितसिद्धान्त कल्पवल्लीभाषानुवाद में तृतीय स्तबक समाप्त । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136