Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ सिद्धान्तकल्पवल्ली [ ब्रह्मसाक्षात्कारकारणवाद अपरे तु मनो हेतुस्तत्सहकारि प्रसंख्यानम् । तस्य करणत्वक्लप्रहमनुभूताविति प्राहुः ॥ १५ ॥ इतरे तु महावाक्यं प्राहुरसाधारणो हेतुः । यन्मनसेति निषेधश्रवणान्न मनोऽत्र हेतुरिति ॥ १६ ॥ क्लप्तस्य प्रत्ययावृत्तिलक्षणस्य प्रसंख्यानस्य क्लप्तप्रमाणानन्तर्भावेऽपि तजन्यसाक्षात्कारस्येश्वरमायावृत्तिज्ञानवदर्थाबाधमात्रेण प्रमात्वसम्भवादिति भावः ॥ १४ ॥ 'मनसैवाऽनुद्रष्टव्यम्' इति श्रुतेः मन एव साक्षात्कारे करणम् । प्रसंख्यानं तु तत्सहकारिमात्रम् । मनसश्च अहंकारोपहितसाक्षात्कारे 'अहमेवेद सर्वोऽस्मीति मन्यते' इति श्रुत्युपदर्शितस्वामब्रह्मसाक्षात्कारे करणत्वक्लोरिति मतान्तरमाहअपरे त्विति ॥ १५॥ 'तद्धास्य विजज्ञौ', 'तस्मै मृदितकषायाय तमसः पारं दर्शयति भगवान् सनस्कुमारः' इत्यादिश्रुतिष्वाचार्योपदेशानन्तरमेव साक्षात्कारोदयाभिधानात् 'वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः', 'तं त्वौपनिषदं पुरुष पृच्छामि' इत्यादिश्रुतिषु च ब्रह्मण प्रसंख्यान करणत्वरूपसे कल्पित है। किन्तु इस प्रसंख्यानका क्लुप्त प्रमाणमें अन्तर्भाव न होनेपर भी तज्जन्य साक्षात्कारमें ईश्वरके मायावृत्तिरूप ज्ञानके समान अर्थेके अबाधमात्रसे प्रमात्वका सम्भव है ॥ १४ ॥ ____ 'अपरे तु' इत्यादिसे । अपरमतवाले तो 'मनसैवानुद्रष्टव्यम्' (मनसे ही अनुद्रष्टव्य है ) इस श्रुतिसे मन ही साक्षात्कार में करण है, यों कहते हैं। प्रसंख्यान तो मनका सहकारी है, क्योंकि अहङ्कारोपहित चैतन्यके साक्षात्कारके प्रति तथा 'अहमेवेदं सर्वोऽस्मीति मन्यते' (यह सब मैं ही हूँ, ऐसा मानता है) इस श्रतिमें उपदर्शित स्वान ब्रह्मसाक्षात्कारके प्रति मनमें करणत्व सिद्ध है ।। १५॥ 'इतरे तु' इत्यादि । इतर मतवाले तो ब्रह्मसाक्षात्कारके प्रति 'तत्त्वमसि' आदि महावाक्य ही असाधारण हेतु हैं, ऐसा कहते हैं । 'तद्धास्य विजज्ञौ', तस्मै मृदित. कषायाय तमसः पारं दर्शयति भगवान् सनत्कुमारः' ( वह उसको स्फुट विज्ञात हुआ। उस निवृत्तमनोमल शिष्यको भगवान् सनत्कुमार तमका पार दर्शाते हैं ) इत्यादि श्रुतियोंसे आचार्यके उपदेशके बाद ही ब्रह्मसाक्षात्कारका उदय कहा गण है। 'वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः' ( वेदान्तविज्ञानसे ही जिनको परमार्थका निश्चय हो गया है ) 'तं त्वौपनिषदं पुरुष पृच्छामि' ( मैं उन उपनिषद्गम्य पुरुषको पूछता हूँ) इत्यादि श्रुतियोंसे ब्रह्ममें उपनिषदेकवेद्यत्वका प्रतिपादन किया गया है। इससे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136