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भाषानुवादसहिता
तत्राऽपि क्लसफलतो नित्यानामेव कर्मणामितरे । काम्यानामपि तेषां संयोगपृथक्त्वनयतोऽन्ये ॥ ४ ॥
तृतीय स्तबक ]
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तपोऽनाशग्रहणं वानप्रस्थकर्मणामुपलक्षणमिति आश्रमकर्मणामेव विद्योपयोगः न विधुराद्यनुष्ठितकर्मणामिति मतं दर्शयति — तत्रेति । 'अन्तरा चाऽपि तु तद्रष्टेः' इत्यधिकरणभाष्ये विधुराद्यनुष्ठितजप्यादिकर्मणामपि विद्योपयोगोक्त्या ' विहितत्वा=च्चाऽऽश्रमकर्मापि' इति सूत्रे आश्रमग्रहणं त्रैवर्णिकोपलक्षणमिति कल्पतरूक्त्या च विधुरकृतानामपि कर्मणामुपयोग इति मतान्तरमाह - अन्य इत्यादिना । इमम् उपयोगमित्यर्थः 1: 113 11
तेष्वपि नित्यानामेव कर्मणामुपयोगः, क्लृप्तस्य तत्फलस्यैव दुरितक्षयस्य विद्ययाऽपेक्षणात् । प्रकृतौ लघोपकाराणामङ्गानां विकृताविव द्वारान्तरकल्पनालाघवेन यज्ञादिश्रुतेः काम्यसाधारण्यायोगादिति मन्यमानानां मतान्तरमाह – तत्रेति । उपयोगमाहुरित्यध्याहारः । नाऽत्र प्राकृताङ्गन्यायः । किन्तु विकृत्युपदिष्टाङ्गन्यायेन विनियोगोत्तरकालमुपकार द्वार कल्पनात् काम्यादीनामपि संयोगपृथक्त्वन्यायेन विवि
उपलक्षण है एवं तप आदि वानप्रस्थ के कर्मोंका उपलक्षण है; अतः आश्रमविहित कमका ही विद्यामें उपयोग है, ऐसा कई एक मानते हैं । कल्पतरुकार अमलानन्दके कथनका अनुकरण करनेवाले अन्य यों कहते हैं कि विधुरकृत कमोंका भी विद्या में उपयोग है अर्थात् 'अन्तरा चापि तु तद्दृष्टे : ' ( ब्र० सू० ३ | ४ | ३६ ) इस अधिकरणके भाष्यमें विधुरादि द्वारा अनुष्ठित जपादि कर्मोंका भी विद्यामें उपयोग कहा गया है । तथा 'विहितत्वाच्चाऽऽश्रमकर्मापि ' ( ब्र० सू० ३ | ४ | ३२ ) इस सूत्र में 'आश्रमग्रहण त्रैवर्णिकका उपलक्षण है' इस कल्पतरुके वचनसे उपर्युक्त विधुरकृत कर्मा भी विद्या उपयोग सम्मत है ॥ ३ ॥
इसी विषय में और दो मत दर्शाते हैं - ' तत्राऽपि' इत्यादिसे ।
उन कर्मो में भी नित्यकमोंका ही उपयोग है, क्योंकि नित्य कमका क्लृप्त फल जो दुरितक्षय है उसकी विद्या अपेक्षा रखती है, ऐसा इतर मानते हैं । जैसे प्रकृतिमें क्लृप्त उपकारवाले अङ्गोंका अतिदेश होने के कारण विकृतिमें प्राकृत उपकार से अतिरिक्त उनसे उपकारकी कल्पना नहीं होती; वैसे ही ज्ञानमें विनियुक्त यज्ञादि कर्मोंका नित्य क्लृप्त जो पापक्षयरूप फल है, उससे पृथक् कोई नित्य काम्यसाधारण विद्योपयोगी उपकारककी कल्पना नहीं होती । यहाँ प्राकृताङ्गन्याय नहीं है, किन्तु विकृतिमें उपदिष्ट अङ्गों के न्यायसे विनियोगोत्तर काल में उपकाररूप द्वारकी कल्पना होती है, जिससे
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