Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 110
________________ तृतीय स्तबक ] भाषानुवादसहिता तृतीयः स्तबकः । १. कर्मणां विद्योपयोगप्रकारवादः ज्ञानेनैव ब्रह्मावाप्तिः कथमन्यतोऽपि तत्स्मरणात् । नाऽन्यानुपयोगात्तत्प्राप्तावज्ञाननाशरूपायाम् ॥१॥ प्रथमस्तबकेन सर्ववेदान्तानामद्वितीये ब्रह्मणि समन्वये द्वितीयेन तदविरोधे समर्थिते तादृशब्रह्मप्राप्तौ ज्ञानमेव साधनं नान्यदिति समर्थनाय शक्कतेज्ञानेनैवेति । अन्यतः ज्ञानादन्येन कर्मणेत्यर्थः । तत्स्मरणादिति 'कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः' इति कर्मणां ब्रह्मप्राप्तिस्मरणादित्यर्थः । विस्मृतकण्ठचामीकरस्येव नित्यप्राप्तस्य ब्रह्मणोऽज्ञाननिरासरूपायां तत्प्राप्तौ ज्ञानमात्रस्योपयोगेन तदन्यस्य कर्मणोऽनुपयोगान्नैवमिति परिहरति-नाऽन्यानुपयोगादित्यादिना । 'नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय' इत्यादिश्रुत्या साधनान्तरप्रतिषेधात् । स्मृतेश्च ब्रह्मावाप्तौ कर्मणः परम्परासाधनत्वपरत्वान्न विरोध इति भावः ॥ १॥ प्रथम स्तबकमें सभी वेदान्तोंका अद्वितीय ब्रह्ममें समन्वय दिखलाकर द्वितीय स्तबकसे उस समन्वयका किसी भी प्रमाणके साथ विरोध नहीं है, ऐसा समर्थन किया। अब तृतीय स्तबकमें उक्त ब्रह्मकी प्राप्तिमें ज्ञान ही साधन है; अन्य साधन नहीं है, ऐसा समर्थन करनेके लिए शङ्का करते हैं-'ज्ञानेनैव' इत्यादिसे । ___ज्ञानसे ही ब्रह्मकी प्राप्ति होती है, ऐसा नियम क्यों ? ज्ञानको छोड़ कर कर्मसे भी ब्रह्मको प्राप्ति हो सकती है, क्योंकि 'कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः' ( कर्मसे ही जनकादि संसिद्धिको प्राप्त हुए) इस स्मृतिवचनमें ब्रह्मप्राप्तिके प्रति कर्म मी कारण कहा गया है। इस शङ्काका परिहार करते हैं-अज्ञाननाशरूप ब्रह्मप्राप्ति में ज्ञानके सिवा अन्यका उपयोग न होनेसे कर्म कारण नहीं हो सकता। तात्पर्य यह है कि विस्मृत कण्ठके आभरणकी नाई ब्रह्म नित्य प्राप्त ही है, पर अज्ञानसे अप्राप्तसा प्रतीत होता है, उस अज्ञानके निरासमें ज्ञानमात्रका उपयोग है, अतः अज्ञाननिरासरूप ब्रह्मकी प्राप्तिमें ज्ञानसे अतिरिक्त कमोदिका उपयोग नहीं हो सकता। 'नाऽन्यः पन्था विद्यतेऽयनाय' (मोक्षकी प्राप्तिका ज्ञानको छोड़कर कोई दूसरा मार्ग है ही नहीं) इत्यादि श्रुतिसे अन्य साधनका स्पष्ट निषेध है। अतः जो स्मृतिवाक्य कहा गया है, उसका ब्रह्मप्राप्तिमें परम्परासे कर्म साधन हैं, ऐसा तात्पर्य होनेके कारण विरोध नहीं है ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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