Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 100
________________ द्वितीय स्तबक.] भाषानुवादसहिता ७५ wwwcmmmmmmm जल केचिदनादित्वेनाऽविद्यादेनॆष कल्पकस्तस्य । किन्त्वेतद्व्यतिरिक्तप्रपञ्चमात्रस्य तावदिति ॥ ३३ ॥ केचित्तु दृष्टिरेव प्रपञ्चसृष्टिस्ततो नाऽन्या। दृश्यस्य दृष्टिभेदे मानाभावादिति प्राहुः ॥ ३४ ॥ सृष्टस्य दृष्टिवादे जगतोऽस्मद्भ्रान्त्यकल्पितत्वेऽपि । सदसद्विलक्षणतया मिथ्यात्वमिहोपपन्नमित्यन्ये ॥ ३५ ॥ अस्मिन्नेव वादे वस्तुतोऽविद्यादेरनादित्वेन तदन्यत्राऽऽत्मा कल्पक इति मतान्तरमाह-केचिदिति । एषः पूर्वोक्त आत्मेत्यर्थः ॥ ३३ ॥ दृष्टिसृष्टिवादे सिद्धान्तमुक्तावस्युक्तं विरोषान्तरमाह-केचिदिति । प्रस्तुतप्रपञ्चस्य दृष्ट्यभेदे 'ज्ञानस्वरूपमेवाऽऽहुर्जगदेतद्विलक्षणम्' इत्यादि विष्णुपुराणवचम प्रमाणमस्तीति भावः ॥ ३४ ॥ ईश्वरसृष्टस्य जगतो दृष्टिरिति पक्षेऽध्यासकारणदोषसंस्काराभावेनाऽस्मदादिभ्रान्त्यकल्पितत्वेऽपि सदसद्विलक्षणत्वेन श्रुतिप्रमाणकमिथ्यात्वं संभवतीति पूर्वोक्तमतद्वये मनःप्रत्ययमलभमानानां केषांचिन्मतमाह-सृष्टस्येति ॥ ३५ ॥ ___'केचिदना०' इत्यादि । इस दृष्टिसृष्टिवादमें वस्तुतः अविद्यादि अनादि ही हैं; अतः उनसे अतिरिक्त सब प्रपञ्चका यह आत्मा ही कल्पक है। अविद्याके वास्तव अनादित्वको सिद्धवत् मानकर पूर्वोक्त उपाध्यसिद्धिका परिहार किया ॥ ३३ ॥ दृष्टि-सृष्टिवादमें सिद्धान्तमुक्तावलीमें कथित अन्य विरोध बतलाते हैं'केचित्तु' इत्यादिसे । कई एक तो दृष्टि ही प्रपञ्चकी सृष्टि है। इससे अन्य सृष्टि नहीं है और दृश्यका दृष्टिसे भेद माननेमें कोई प्रमाण नहीं है। प्रत्युत दृष्टिसे दृश्यके अभेदके बोधक 'ज्ञानस्वरूपमेवाहुर्जगदेतद्विलक्षणम्' ( यह जगत् ज्ञानस्वरूप ही है) इत्यादि अनेक विष्णुपुराणादिके वचन प्रमाण हैं, ऐसा कहते हैं ॥ ३४ ॥ पूर्वोक्त दो मतोंमें जिसको विश्वास नहीं होता, उसका मत कहते हैं'सृष्टस्य' इत्यादिसे। ईश्वर द्वारा सृष्ट जगत्की दृष्टि (प्रतीति) होती है, इस पक्षमें अध्यासके कारणीभूत दोष, संस्कार आदि नहीं हैं, अतः प्रपञ्च यद्यपि हम लोगोंकी भ्रान्तिसे कल्पित नहीं है, तथापि सदसद्विलक्षण होनेसे उसका मिथ्यात्व तो श्रुतिरूप प्रमाणसे सर्वथा हो सकता है ॥ ३५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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