Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ २६ सिद्धान्तकल्पवल्ली [ जीवैकत्वनानात्ववाद प्रतिजीवमविद्याया भेदं स्वीकृत्य केचिदेतस्याः। अनुवृत्तिनिवृत्तिभ्यामुपपन्ना सा व्यवस्थेति ॥ ४४ ॥ नन्वेतस्मिन् पक्षे कस्याऽविद्याकृतः प्रपञ्चः स्यात् । विनिगमकाभावादिह सर्वाविद्याकृतः स इत्येके ॥ ४५ ॥ mmmmmmmmmar नष्टां व्यक्ति जातिरिव तत्त्वविदं त्यजति । स एव मोक्षः । अन्यं यथापूर्वमाश्रयतीति तद्वयवस्था मतान्तरेणाऽऽह-जीवाश्रयमिति ॥ ४३ ॥ नानाविद्यापक्षेऽपि बन्धमुक्तिव्यवस्था केषांचिन्मतेनाऽऽह-प्रतिजीवमिति ॥ ४४ ॥ नन्वस्मिन् पक्षे कस्याऽविद्यया प्रपञ्चः कृतोऽस्वित्याशङ्कय विनिगमनाविरहात् सर्वाविद्याकृतः, अनेकतन्त्वारब्धपटवत्, इति केषांचिन्मतेनोत्तरमाह-नन्विति । एवं अज्ञान ब्रह्माश्रित नहीं है, किन्तु जीवाश्रित है और वह गोत्वादिके समान प्रत्येक जीवको व्याप्त करके रहता है, अतः जैसे नष्ट व्यक्तिको जाति छोड़ देती है, वैसे ही यह अज्ञान भी तत्त्वविद् जीवका त्याग कर देता है। यही उस जीवकी मुक्ति है । और अन्य जीवोंको वह पूर्ववत् अपना आश्रय बना रखता है, इस प्रकार बन्ध और मोक्षकी व्यवस्था कई एक करते हैं ॥ ४३ ॥ ___ यह तो अविद्याका एकत्व माननेवालोंके मतसे कहा, अब अविद्याका नानात्व माननेवालोंके पक्ष में भी जिस तरह बन्ध और मोक्षकी व्यवस्था हो सकती है, उसका निरूपण करते हैं-'प्रतिजीवम्' इत्यादिसे। प्रत्येक जीवमें अविद्याका भेद मानकर उस अविद्याकी अनुवृत्ति जबतक बनी रहती है, तबतक बन्ध रहता है, और निवृत्ति होनेपर मोक्ष हो जाता है, यों कई एक बन्ध और मोक्षकी व्यवस्थाका उपपादन करते हैं ॥ ४४ ॥ प्रत्येक जीवमें अविद्या भिन्न भिन्न माननेसे यह शङ्का हो सकती है कि किस जीवकी अविद्याने इस प्रपञ्चको बनाया ? अतः इस शङ्काका परिहार करते हैं'नन्वेतस्मिन्' इत्यादिसे। भला बतलाइए कि इस अविद्यानानात्वपक्षमें इस प्रपञ्चका निर्माण किसकी अविद्याने किया ? इस शङ्काके उत्तर में 'अमुक जीवकी अविद्याने किया ऐसा कहनेमें कोई विनिगमक ( एक पक्षकी साधक युक्ति) नहीं है, अतः इस प्रपञ्चको सभी जीवोंकी अविद्याओंने बनाया है, यही अन्ततोगत्वा स्वीकार करना पड़ेगा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136