Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 86
________________ द्वितीय स्तबक ] भाषानुवादसहिता wwwwwwwwwww प्रत्यक्षसमधिगम्यं सत्वं जात्यादि न त्वबाध्यत्वम् । न विरुध्यते तदेतन्मिथ्यात्वेनेति चक्षते केचित् ॥ ५॥ यावद् ब्रह्मविनिश्चयमबाध्यतारूपसत्त्वस्य । प्रत्यक्षग्राह्यत्वेऽप्यविरोधः श्रुतिभिरित्यन्ये ॥ ६ ॥ अस्तु विरोधस्तदपि श्रुत्या निर्दोषया कनीयस्या । ज्यायोऽपि प्रत्यक्ष शङ्कितदोषं च बाध्यमित्यपरे ॥ ७॥ वर्तमानमात्रगोचरप्रत्यक्षेण कालत्रयावाध्यत्वरूपसत्त्वग्रहणायोगात् तद्वद्य जात्यादिरूपमेव सत्त्वम् । तच्च मिथ्यात्वेन न विरुध्यत इति मतान्तरमाहप्रत्यक्षेति ॥५॥ द्विविधं सत्त्वम्-यावद्ब्रह्मज्ञानमबाध्यत्वरूपं सर्वदैवाऽबाध्यत्वरूपं चेति । तत्राऽऽद्यस्य प्रत्यक्षग्राह्यत्वेऽपि मिथ्यात्वप्रतिपादकश्रुतिभिर्न विरोध इति मतान्तरमाह-यावदिति ॥ ६॥ प्रपञ्चस्य मिथ्यात्वसत्यत्वग्राहिणोः श्रुतिप्रत्यक्षयोविरोघेऽपि दोषशङ्काकलङ्कितं प्रथमप्रवृत्तमपि प्रत्यक्ष निर्दोषत्वादपच्छेदन्यायेन परत्वाबलीयस्या श्रुत्या बाध्यत इति मतान्तरमाह-अस्त्विति ॥ ७ ॥ इस प्रसङ्गमें अन्य मत भी दिखलाते हैं-'प्रत्यक्षः' इत्यादिसे । प्रत्यक्षसे जो सत्त्व जाना जाता है, वह जात्यादिरूप सत्त्व है; अबाध्यत्वरूप नहीं है, क्योंकि वर्तमानमात्रको विषय करनेवाला प्रत्यक्ष कालत्रयाबाध्यत्वरूप सत्त्वको ग्रहण नहीं कर सकता और वह जात्यादिरूप सत्त्व मिथ्यात्वका विरोधी नहीं है, ऐसा कई एक कहते हैं ॥५॥ ____ यावद् ब्रह्मः' इत्यादि । अन्य मतवालोका कहना है कि सत्त्व दो प्रकारका होता है-एक तो ब्रह्मज्ञान जबतक न हो तबतक अबाधित रहनेवाला और दूसरा सर्वदैव अबाधित रहनेवाला । इन दोनोंमें से ब्रह्मज्ञानकी उत्पत्तिके पहले तक रहनेवाला अबाध्यत्वरूप जो प्रथम सत्व है, उसमें प्रत्यक्ष द्वारा ग्राह्यत्व होनेपर भी मिथ्यास्वप्रतिपादक श्रुतिसे कोई विरोध नहीं है ॥ ६॥ ___'अस्तु' इत्यादि । प्रपञ्चमें मिथ्यात्वबोधक श्रुति और सत्यत्वग्राही प्रत्यक्षइन दोनोंका विरोध भले ही हो, तथापि दोषशङ्कासे कलङ्कित प्रत्यक्षके प्रथम प्रवृत्त होनेपर भी उसका निर्दोष और पर होनेके कारण बलीयसी श्रुतिके द्वारा अपच्छेदन्यायसेॐ बाध होता है, ऐसा अन्य कहते हैं ॥ ७ ॥ * जैमिनीय पूर्वमीमांसाके षष्ठाध्यायके पञ्चम पादमें-'पौर्वापर्ये पूर्वदौर्बल्यं प्रकृतिवत्' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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