Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 96
________________ ~~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ द्वितीय स्तबक ] भाषानुवादसहिता निद्रादोषयुतायामन्तवृत्तावभिव्यक्ते । शुद्धे चैतन्ये स्यात् स्वमाध्यास इति मन्वते केचित् ॥ २४ ॥ केचित्तस्मिन्नेवाऽविद्याप्रतिबिम्बचैतन्ये । स्वयमपरोक्षतयाऽस्य तु तद्भासार्थ न वृत्त्यपेक्षेति ॥ २५ ॥ mn अहङ्कारोपहिते शुद्धे वा प्रागुक्तस्वानाध्यासो न युक्तः । आये 'अहं गजः' गजवान्या' इति भानापत्तेः । द्वितीये प्रमातृसंबन्धाय चक्षुरादिवृत्त्यपेक्षोपपत्तेरित्याशय अन्तःकरणस्य बहिरस्वातन्त्र्येऽपि देहान्तःस्वातन्त्र्यात् तदन्तःकरणवृत्तौ निद्रादोषोपेतायामभिव्यक्त शुद्धचैतन्ये तदाश्रिताविद्यापरिणामरूपः स्वप्नाध्यास इति विवरणोपन्यासकन्मतेन द्वितीयपक्षे दोषमुद्धरति-निद्रेति । साक्षात् प्रमातृसंबन्धेन तद्भानोपपत्तेस्तदर्थ न चक्षुरादिवृत्त्यपेक्षेति भावः ॥ २४ ॥ अविद्याप्रतिबिम्बे पूर्वोक्तशुद्धचैतन्य एव स्वप्नाध्यासः । अस्य शुद्धचैतन्यस्य स्वत एवाऽऽपरोक्ष्यादध्यासावभासकत्वोपपत्तेस्तदर्थ न चक्षुरादिवृत्त्यपेक्षेति द्वितीयपक्ष एव मतान्तरेण दोषमुद्धरति-केचिदिति । प्रमात्वस्वप्नदृष्टत्वानुभवस्तु तदधिष्ठानशुद्धचैतन्यगोचरतत्समनियतान्तःकरणवृत्तिकृताभेदाभिव्यक्तेरिति भावः ॥ २५ ॥ पूर्वोक्त स्वप्नाध्यास अहङ्कारोपहित चैतन्यमें या शुद्ध चैतन्यमें युक्त नहीं है, क्योंकि अहङ्कारोपहित चैतन्यमें माननेपर स्वप्नदृष्ट गजमें 'यह गज है' ऐसा भान न होगा; किन्तु 'मैं गज हूँ' ऐसा भान होगा। यदि शुद्ध चैतन्यमें माने, तो प्रमातृसम्बन्धके लिए वृत्तिकी अपेक्षा होगी, इन दोनों मतोंमें जो अनुपपत्ति आती है, उसका विवरणोपन्यासकारके मतसे द्वितीयपक्षोक्त-दोषोद्धारपूर्वक परिहार दर्शाते हैं-'निद्रादोष०' इत्यादिसे । ___ अन्तःकरणका यद्यपि बाहरके विषयमें स्वातन्त्र्य नहीं है, तथापि देहके भीतर उसका स्वातन्त्र्य होनेसे निद्रादोषसे युक्त अन्तःकरणवृत्तिमें अभिव्यक्त शुद्ध चैतन्याश्रित जो अविद्या है, उसो अविद्याका स्वप्नाध्यास परिणाम होता है; ऐसा विवरणोपन्यासकार आदि मानते हैं। इस मतमें साक्षात् प्रमातृसम्बन्धसे भान होनेपर उसके लिए चक्षुरादि वृत्तिकी अपेक्षा नहीं रहती ॥ २४ ॥ ___ 'केचित्' इत्यादि । अविद्याप्रतिबिम्बरूप पूर्वोक्त शुद्ध चैतन्यमें ही स्वप्नाभ्यास होता है और उस शुद्ध चैतन्यमें स्वतः ही अपरोक्षत्व होनेसे वह अध्यासका अवभासक बन सकता है; अतः उसके लिए चक्षुरादिवृत्तिकी अपेक्षा नहीं है, ऐसा कई एकका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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