Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 56
________________ प्रथम स्तवक ] भाषानुवादसहिता mm स्वेनैव ज्ञानेन स्वनिष्ठसर्वावभासकत्वेन । सर्वज्ञत्वमितीत्थं समर्थयन्ति स्म कौमुदीकाराः ॥ ५४ ॥ अत्र च सर्वज्ञत्वं सर्वज्ञानस्वरूपतेत्येके । दृश्यावच्छिन्नस्वज्ञानं प्रति कर्तृता तदित्यपरे ॥ ५५ ॥ ७. जीवाल्पज्ञत्ववादः नन्वीश्वरो यथा किल वृत्यनपेक्षः स्वरूपभासैव । विषयानवभासयति स्याजीवोऽप्येवमित्यत्र ॥ ५६ ॥ आत्मस्वरूपज्ञानेनैव ब्रह्मणः स्वाध्यस्तसर्वप्रपञ्चावभासकत्वात् सार्वघ्यमिति मतान्तरमाह--स्वेनैवेति । चित्रभित्तौ विमृष्टानुन्मीलितचित्रयोरिव स्वरूपे सूक्ष्मरूपेणाऽतीतानागतयोरपि सत्त्वादिति भावः ॥ ५४ ॥ अत्र सर्वावभासकज्ञानस्वरूपत्वमेव सार्वश्यम् , न तु ज्ञानकर्तृता; 'वाक्यान्वयात्' इत्यधिकरणभाष्ये ज्ञानकर्तृताया जीवलिङ्गत्वोक्तरिति केषांचिन्मतमाहअत्रेति । अत्र शङ्कायामित्यर्थः । चितः कार्योपहितरूपेण कार्यत्वात् कर्तृता सुवचेति वाचस्पतिमिश्राणां मतमाह-दृश्येति ॥ ५५ ॥ ___ ननु ईश्वर इव जीवोऽपि वृत्त्यनपेक्षस्वरूपचैतन्येन विषयान् कुतो नाऽव इस विषयमें मतान्तर दर्शाते हैं--'स्वेनैव' इत्यादिसे । आत्मस्वरूप ज्ञानसे ही ब्रह्म अपने में अध्यस्त सब प्रपञ्चका अवभासक होनेसे सर्वज्ञ होता है अर्थात् चित्रभित्तिमें परिमार्जित और अप्रकटित चित्रकी नाई ब्रह्म स्वरूपमें सूक्ष्मरूपसे स्थित होकर अतीत और अनागतका भी अवभासक हो कर सर्वज्ञ होता है, इस प्रकार कौमुदीकार ब्रह्मकी सर्वज्ञताका समर्थन करते हैं ॥५४॥ अब वेदान्तसम्मत सर्वज्ञत्वका स्पष्ट अर्थ दिखलाते हैं-'अत्र च' इत्यादिसे । यहाँ सर्वावभासक ज्ञानस्वरूपता ही सर्वज्ञता मानी जाती है, ज्ञानकत्तृता नहीं; क्योंकि 'वाक्यान्वयात्' (ब्र. सू० १।४।१९) इस अधिकरणके भाष्यमें ज्ञानकर्तृता जीवलिङ्ग कही गई है। अर्थात् ५० वें श्लोकमें 'कथम्' कहकर सर्वज्ञत्वको शङ्का की गई थी, उसके परिहार में सर्वज्ञानस्वरूपत्व ही ब्रह्मका सर्वज्ञत्व है, ऐसा मत है। और दृश्यावच्छिन्न स्वज्ञानके प्रति कर्तृता ही सर्वज्ञता है, ऐसा अन्य मानते हैं अर्थात् चित्में कार्योपहितरूपसे कार्यता होनेके कारण कर्तृता कही जा सकती है, ऐसा भामतीकार वाचस्पतिमिश्रका मत है ॥ ५५ ॥ शङ्का करते हैं--'ननु' इत्यादिसे । जैसे ईश्वर वृत्तिकी अपेक्षाके बिना ही अपने स्वरूपप्रकाशसे विषयोंका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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