Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ प्रथम स्तबक] भाषानुवादसहिता ४७ उक्तं हि तत्वशुद्धाविदमंशा रूप्यकोटिरिव । स ब्रह्मकोटिरेव प्रतिभासाजीवकोटिरिति ॥ ८६ ॥ केचिदविद्योपाधि वः साक्षीति भाषन्ते । अन्ये त्वन्तःकरणोपाधि वः स हीति मन्यन्ते ।। ८७ ॥ यथा 'इदं रजतम्' इति म्रमस्थले वस्तुतः शुक्तिकोट्यन्तर्गतोऽपि इदमंशः प्रतिभासतो रजतकोटि:-रजताभिन्नः, तथा ब्रह्मकोटिरेव साक्षी प्रतिभासतो जीवकोटिरिति मतान्तरमाह-उक्तं हीति ॥ ८६ ॥ अविद्योपाधिको जीवः साक्षाद् द्रष्टत्वात् कर्तृत्वाद्यारोपभाक्त्वेऽपि स्वयमुदासीनत्वात् साक्षीति मतान्तरमाह- केचिदिति । 'एको देवः' इति श्रुतिस्तु वास्तवब्रह्माभेदाभिप्रायेति भावः । अविद्योपाधिको जीवो न साक्षी, पुरुषान्तरान्तःकरणादीनामपि पुरुषान्तरं प्रति स्वान्तःकरणभासकसाक्षिसंसर्गाविशेषेण प्रत्यक्षस्वापत्तेः, किन्तु अन्तःकरणोपाधिको जीव एव स इति मतान्तरमाह--अन्ये निवृत्तिका अनुमोदन करनेवाला और स्वयं उदासीन है, वही 'साक्षी' कहलाता है; ऐसा तत्त्वकौमुदीप्रन्थमें उपपादन किया है ॥ ८५ ॥ इसी विषयमें तत्त्वशुद्धिकारका मत कहते हैं-'उक्तम्' इत्यादिसे । तत्त्वशुद्धि ग्रन्थमें कहा गया है कि जहाँ 'इदं रजतम्' (सीपके टुकड़ेमें 'यह चाँदी है ) ऐसा भ्रम होता है, वहाँ जैसे वास्तवमें इदमंश शुक्तिकोटिके अन्तर्गत होनेपर भी प्रतिभासमात्रसे रजतकोटि ( रजतसे अभिन्न-सा ) प्रतीत होता है। वैसे ही यद्यपि वस्तुतः साक्षी ब्रह्मकोटि ही है, तथापि प्रतिभासतः जीवकोटि-सा प्रतीत होता है ॥ ८६ ।। इस विषयमें और भी मत दर्शाते हैं-'केचिद०' इत्यादिसे। कई एक तो कहते हैं कि अविद्योपाधि जीव, साक्षात् द्रष्टा होनेसे और कर्तृत्वादि आरोपका भागी होनेपर भी स्वयं उदासीन होनेसे साक्षी है; और ‘एको देवः' इत्यादि श्रुति तो वास्तव ब्रह्माभेदका बोधन करती है। अन्यमतवाले यों कहते हैं-अविद्यो. पाधिक जीवको साक्षी माननेमें अन्य पुरुषके अन्तःकरण आदिमें भी, पुरुषान्तरके प्रति अपने अन्तःकरणके भासक साक्षीका संसर्ग होनेसे प्रत्यक्षत्वापत्ति होगी, अतः अविद्योपाधिकको साक्षी मानना ठीक नहीं है, किन्तु अन्तःकरणोपाधिक जीव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136