________________
सिद्धान्तकल्पवल्ली [ अहङ्कारादिका अनुसन्धानवाद यवृत्युपहितसाक्षिणि यद्भाति तदा तदीयसंस्कारः । इति नियमाद्विषयान्तरवृत्तिजसंस्कारतस्तदित्याहुः ॥ ९५ ॥ केचिदहंकारावच्छिन्नतया साक्ष्यनित्यतः । संस्कारस्तेनाऽहंकारस्मरणोपपत्तिरिति ॥ ९६ ॥
wwwmmmmmmmmmm स्य ज्ञाने सति अयोगेन नित्येन साक्षिणा तदाधानासंभवादिति शङ्कतेनित्येनेति ॥ ९४ ॥
यद्वृत्त्यवच्छिन्ने साक्षिणि यत् प्रकाशते तद्वृत्त्या तद्गोचरसंस्कार आधीयत इति नियमात् अहंकारादीनां च स्वगोचरवृत्त्यभावे घटादिविषयान्तरगोचरवृत्त्यवच्छिन्नसाक्षिभात्यत्वेन तादृशवृत्तिजन्यसंस्कारवत्तया अनुसंधानमुपपद्यत इति मतेन समाषते-यवृत्तीति । एतन्नियमानभ्युपगमे स्ववृत्त्या स्वगोचरसंस्काराधानापत्तवृत्तिगोचरवृत्त्यन्तराभ्युपगमेऽनवस्थाप्रसङ्गादिति भावः ॥ ९५ ॥
अन्याकारवृत्त्या अन्यगोचरसंस्काराधाने विषयव्यवस्थानुपपत्तेः स्वाकारवृत्त्यैव स्वगोचरसंस्काराधानमिति नियमः । तथा च अहंकारादिषु स्वाकारवृत्त्यभावेऽपि स्वभासकस्य साक्षिणः स्वावच्छिन्नत्वेनाऽनित्यतया तेन संस्काराद्युपपत्तिरिति मतान्तरमाह-केचिदिति ॥ ९६ ॥ योग्य नहीं है और नित्य साक्षीसे संस्कारके आधानकी सम्भावना ही जब नहीं है, तब साक्षीसे भास्य अहङ्कारादिका अनुसन्धान कैसे होगा ? यदि ऐसी आशंका हो, तो उसका परिहार करते हैं-'यवृत्यु०' इत्यादिसे । 'जिस वृत्तिसे अवच्छिन्न साक्षीमें जो प्रकाशित होता है, उस वृत्तिसे तद्गोचर संस्कारका आधान होता है' ऐसा नियम होनेके कारण अहङ्कारादिमें स्वगोचर वृत्तिका अभाव है; अतः अन्य घटादिविषयक वृत्तिसे अवच्छिन्न साक्षीसे उनका भास होता है, इसलिए उक्त वृत्तिजन्य संस्कारवत्तासे अहंकारादिका अनुसन्धान उपपन्न हो सकेगा। यदि ऐसा नियम न मानें, तो स्ववृत्तिमें स्वगोचरसंस्काराधानको आपत्ति होगी और वृत्तिगोचर अन्य वृत्ति मानी जाय, तो अनवस्थाका प्रसंग आता है, ऐसा भाव है ॥ ९४,९५ ॥ __ अन्याकार वृत्तिसे अन्यगोचर संस्कारका आधान होता है, ऐसा माननेमें विषयको व्यवस्था उपपन्न नहीं होती, अतः स्वाकारवृत्तिसे ही स्वगोचर संस्कारका आधान होता है, ऐसा नियम माना जाता है, इस परिस्थितिमें अहङ्कारादिमें स्वाकारवृत्तिका अभाव होनेपर भी स्वभासक साक्षीकी स्वावच्छिन्नत्वरूपसे अनित्यता होनेके कारण संस्कारादिकी उपपत्ति होगी; ऐसा मतान्तर दर्शाते हैं-'केचिद०' इत्यादिसे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com