Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 77
________________ सिद्धान्तकल्पवल्ली [अहङ्कारादिका अनुसन्धानवाद इत्थं च बाह्यविषयापरोक्षवृत्त्यावृतिक्षतिः सिद्धा। नन्वेवमिदंवृत्याऽज्ञाने नष्टे भ्रमो न स्यात् ॥ १० ॥ अत्रेदंवृत्याऽपरमिदमंशाज्ञाननाशेऽपि । शुक्त्यंशाज्ञानवशाद्रजताध्यासोपपत्तिरित्याहुः ॥१०१ ॥ अन्ये त्विदमाकारकवृत्त्यावरणांशनाशेऽपि । विक्षेपांशोपहितादिदमंशाज्ञानतः सेति ॥ १०२ ॥ इयता प्रबन्धेन प्रतिपादितं बाह्यापरोक्षवृत्त्यैवाऽऽवरणाभिभव इति नियममुपसहत्याऽस्याऽपि नियमस्य शुक्तिरजतभ्रमस्थलेऽतिप्रसङ्गः शकते-इत्थमिति । आवृतिक्षतिः आवरणाभिभव इत्यर्थः । उपादानाभावादिति भावः ॥ १०० ॥ इदमाकारवृत्येदमंशाज्ञानस्य नाशेऽपि न पश्यामि' इत्यनुभवेन शुक्त्यंशाज्ञानसस्वेन तद्वशादजताध्यासोपपत्तिरिति परिहरति-अत्रेति ॥ १०१ ॥ इदमंशसम्मिन्नत्वेन प्रतीयमानस्य रजतस्येदमंशाज्ञानमेवोपादानम् । तस्येदमाहोनेसे अहङ्काराद्यनुसन्धानमें किसी प्रकारको अनुपपत्ति नहीं है, ऐसा मतान्तर दर्शाते हैं-'अन्ये तु' इत्यादिसे । ___ अन्य तो यों कहते हैं कि अहंवृत्ति क्रिया नहीं है, किन्तु ज्ञान है, क्योंकि वह प्रमाणसे जन्य है, इससे अहङ्कारादिके अनुसन्धानमें किसी दोषकी आपत्ति नहीं आती ।। ९९ ॥ इतने प्रन्थसन्दर्भसे प्रतिपादित जो-'बाह्य अपरोक्ष वृत्तिसे ही आवरणाभिभव होता है'-नियम दर्शाया, उसका उपसंहार करके उस नियमका भी शुक्तिरजतादि भ्रमस्थलमें अतिप्रसङ्ग है, ऐसी शङ्का करते हैं-'इत्थं च' इत्यादिसे। उक्त प्रकारसे बाह्य विषयकी अपरोक्ष वृत्तिसे आवृति-क्षतिके (आवरणका अभिभव) सिद्ध होनेपर शुक्तिरजतस्थलमें इदंवृत्तिसे अज्ञान नष्ट हो जाता है, फिर भ्रम नहीं होगा; क्योंकि भ्रमका उपादान नष्ट हो गया है ॥ १०० ॥ उपर्युक्त शङ्काका परिहार करते हैं-'अत्रेदम्' इत्यादिसे । यहाँ यद्यपि 'इदंवृत्ति' से इदमंशके अज्ञानका नाश हुआ है, तथापि 'न पश्यामि' (मैं नहीं देखता) इत्याकारक शुक्त्यंशके अज्ञानके विद्यमान होनेसे तद्वशात् रजताध्यास बन सकता है, ऐसा परिहार है ॥ १०१॥ इस विषयमें और भी मतान्तर दर्शाते हैं-'अन्ये' इत्यादिसे । इदमंशसे मिलित होकर प्रतीयमान रजतके इदमंशका अज्ञान ही उपादान है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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