Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ ५४ सिद्धान्तकल्पवल्ली [वृत्ति-निर्गमनवाद इदमिति मानसवृत्तिरविद्यावृत्तिस्तु तद्भिन्ना। रजताकारा तस्या नेदंविषयत्वमित्यपरे ॥ १०६ ॥ १७. अपरोक्षानुभूत्यर्थ वृत्तेर्निर्गमवादः नन्वविनिर्गतवृत्त्यवच्छिन्नेनैव साक्षिबोधेन । सकलविषयावभासोपपत्तिरिति वृत्तिनिर्गमो व्यर्थः ॥१०७ ॥ भयगोचरा, 'इदं रजतं जानामि' इतीदमर्थतादात्म्येन रजतानुभवादिति मतान्तरमाहज्ञानद्वयमिति ॥ १०५॥ अध्यासात् पूर्वमिदमिति जायमाना वृत्तिानसी, रजताकारा तु इदमाकारवृत्त्यवच्छिन्नचैतन्यस्थाविद्यापरिणामरूपतयाऽविद्यावृत्तिः । तस्याश्च नेदंविषयत्वम् । इदमर्थतादात्म्यानुभवस्तु अघिगतेदंत्वविषयत्वसंसर्गेण युज्यत इति मतान्तरमाहइदमिति ॥ १०६ ॥ परोक्षस्थल इवाऽपरोक्षवृत्तिस्थलेऽप्यविनिर्गतवृत्त्यवच्छिन्नसाक्षिचैतन्येनैव सकलविषयावभासोपपत्तेरनुमितिशाब्दयोरिव कारणवैलक्षण्योपपत्तेः वृत्तेविषयदेशकल्पनं वृथेति शङ्कते-नन्विति ॥ १०७ ॥ ध्यासकी उपादानभूत एक इदंवृत्ति ही है और इदम् और अध्यस्त रजत-इन दोनोंका अवलम्बन करनेवाली वृत्ति दूसरी है, क्योंकि 'इदं रजतं जानामि' ( इस रजतको मैं जानता हूँ), यों इदमर्थके साथ तादात्म्यसे रजतका अनुभव होता है, ऐसा वृत्तिद्वयोपकल्पित दो ज्ञानोंको माननेवालेका मत है ॥ १०५॥ उक्त मतका प्रतिवाद करनेवालेका मत दर्शाते हैं-'इदमिति' इत्यादिसे । अध्याससे पूर्व उत्पन्न होनेवाली इदंवृत्ति मानसी क्रिया है; अविद्यावृत्ति तो इससे भिन्न है, क्योंकि इदमाकारवृत्त्यवच्छिन्न जो चैतन्य है, उस चैतन्यमें विद्यमान अविद्याके परिणामरूप रजताकार अविद्यावृत्ति होती है; उसको इदंविषयत्व नहीं है; इदमर्थके साथ तादात्म्यानुभव जो होता है, सो अधिगत (प्रथमोत्पन्न) इदंत्वविषयत्वके संसर्गसे बनता है, ऐसा अपर मतवाले मानते हैं ॥ १०६॥ 'नन्व०' इत्यादि । परोक्षस्थलकी नाई अपरोक्षवृत्तिस्थलमें भी अनिर्गत वृत्सेि अवच्छिन्न साक्षिचैतन्यसे ही सकल विषयोंका अवभास उपपन्न होनेके कारण वृत्तिनिर्गमनका मानना व्यर्थ है अर्थात् अनुमिति और शब्दज्ञान-इन दोनोंकी नाई कारणको विलक्षणता तो उपपन्न है फिर वृत्तिका बहिर्देशसे विषयदेशमें गमनकी कल्पना वृथा है, ऐसी शंका करके उत्तर श्लोकसे समाधान करते हैं ॥ १०७ ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136