Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ प्रथम स्तबक ] भाषानुवादसहिता आद्यज्ञानेन घटाद्यज्ञानं तदितरैस्तु विज्ञानैः । देशादिविशिष्टघटाद्यज्ञानं नाश्यमिति केचित् ॥ ७७ ॥ १३. परोक्षज्ञानस्याज्ञानतिवर्तकत्वानिवर्तकत्ववादः नन्वेष नाऽस्ति नियमः परोक्षवृत्तेरनिर्गत्या । विषयाज्ञाननिवर्तकभावायोगादिह प्राऽऽहुः ॥ ७८ ॥ प्रथमज्ञानेन केवलघटाद्यज्ञानमेव निवर्तते । द्वितीयादिज्ञानस्तु देशकालादि. विशिष्टघटाद्यज्ञानमेव । अतस्तेषां सफलतेति मतान्तरमाह-आयेति । अत एव सकृद् दृष्टे 'जानाम्येव चैत्रम् , इदानीं स केति न जानामि' इत्यनुभव इति भावः ॥ ७७ ॥ ननु नाऽयमपि नियमः, परोक्षप्रमाणवृत्तिषु व्यभिचारादिति शङ्कतेनन्विति ॥ ७८ ॥ द्वितीयादि ज्ञानकी सफलतामें अन्य मत दिखलाते हैं-'आद्यज्ञानेन' इत्यादिसे। ___ प्रथम ज्ञानसे केवल घटादिका अज्ञान ही निवृत्त होता है और द्वितीयादि ज्ञानोंसे तो देश, काल, आदिसे विशिष्ट घटादिका अज्ञान निवृत्त होता है, ऐसा कई एक मानते हैं, अतएव एक बार देखनेसे 'मैं चैत्रको जानता हूँ, परन्तु अब वह कहाँ है, यह नहीं जानता' ऐसा अनुभव होता है ॥ ७७ ॥ शङ्का करते हैं-'नन्वेष' इत्यादिसे । ऐसा कोई नियम नहीं है कि ज्ञानमात्र अज्ञानका निवर्तक है, क्योंकि प्रमाणजन्य परोक्षवत्तियोंमें व्यभिचार है, कारण कि परोक्षवृत्तियोंका निर्गमन नहीं होता, अतः वे विषयाज्ञानके निवर्त्तक नहीं बन सकती ॥ ७८ । आवरण करते हैं, अन्य अज्ञान अन्य कालमें आवरण करते हैं, इस रीतिसे विशेष विशेष कालमें ही उक्त अज्ञान विषयोंका ( विषयावच्छिन्न चैतन्यका ) आवरण करनेवाले होते हैं । जो घटादिज्ञान हैं, वे अपनी उत्पत्तिके समय घटादिका आवारक जो अज्ञान होगा, उसीका नाश करते हैं, अतः धारावाहिक-ज्ञानस्थलमें द्वितीयादि ज्ञान भी अपनी उत्पत्तिके समय अवस्थित विषयावारक अज्ञानके नाशक होने के कारण सफल हैं; यह भाव है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136