Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ प्रथम स्तवक ] भाषानुवादसहिता वाचस्पतिमतरीतिस्त्वन्तःकरणेन यच्यवच्छिन्नम् । चैतन्यं तजीवः स्यादनवच्छिन्न चैतन्यमीश इति ।। ३५ ।। वार्तिकक्रन्मतमित्थं न प्रतिबिम्बो न चाऽप्यवच्छिन्नः । ब्रह्मवाऽविद्यातः संसरतीवाऽथ मुच्यत इवेति ॥ ३६ ॥ २१ दर्शयति' इत्यधिकरणभाष्येऽन्तः करणभेदे सत्यपि जीवभेदाभावस्योपपादितत्वात् । ईश्वरोऽपि नाऽविद्या प्रतिबिम्बः, तत्पारतन्त्र्यापतेः । किन्तु अविद्या प्रतिबिम्बलक्षणो जीवः, तद्विम्भूत ईश्वर इति तयोर्विभाग इति मतान्तरमाह - विवरणेति ॥ ३४ ॥ ईश्वरो जीवश्च न प्रतिबिम्बः, नीरूपत्वेन चैतन्यस्य प्रतिबिम्बायोगात् सलिले गगनप्रतिबिम्बस्य भ्रान्तिमात्रत्वात् । किन्तु घटाकाशवदन्तः करणावच्छिन्नं चैतन्यं जीवः, तदनवच्छिन्नं चैतन्यं त्वीश्वर इति मतान्तरमाह - वाचस्पतीति । अन्तःकरणेन यदनवच्छिन्नं चैतन्यं तदीश इत्यन्वयः ॥ ३५॥ 'ब्रह्मैव स्वाविद्यया संसरति स्वविद्यया मुच्यते' इति बृहदारण्यकभाष्यो केः जीवो न प्रतिबिम्ब: नाऽप्यवच्छिन्नः; किन्तु व्याघकुलसंवर्धितराजकुमारवदविकृतमेव ( ब्र० सू० ४ । ४ । १५ ) इस अधिकरण के भाष्य में - अन्तःकरणका भेद होनेपर भी जीवभेद नहीं होता, ऐसा उपपादन किया गया है । किञ्च, ईश्वरको भी अविद्याप्रतिबिम्ब माननेसे ईश्वर के अविद्या परतंत्र हो जानेकी आपत्ति आती है, इन सब आपत्तियों का परिहार सोचकर विवरणाचार्य प्रकाशात्म श्रीचरणने निर्णय किया है कि जीव अविद्या प्रतिबिम्बस्वरूप है और ईश्वर इस प्रतिबिम्बके प्रति बिम्बभूत है; ऐसा जीव और ईश्वरका विभाग है ॥ ३४ ॥ यह बिम्ब प्रतिबिम्बादि कल्पना केवल प्रक्रिया समझानेके लिए की जाती है, वास्तव में वह युक्त नहीं है, क्योंकि चैतन्यके नीरूप होनेसे जीव और ईश्वर उसके प्रतिबिम्ब नहीं हो सकते, यदि कोई कहे कि नीरूप गगनका जलमें प्रतिबिम्ब दीखता है, तो यह कथन भ्रान्तिमात्र है-यों प्रतिबिम्बवाद के युक्तिसंगत न होनेसे मतान्तर दर्शाते हैं - ' वाचस्पति ०' इत्यादिसे | भामतीकार श्रीवाचस्पतिका मत इस प्रकारका है कि अन्तःकरणसे अवच्छिन्न जो चैतन्य है वह जीव है और महाकाशस्थानीय अनवच्छिन्न चैतन्य ईश्वर है; अर्थात् घटाकाशवत् अन्तःकरणावच्छिन्न चैतन्य जीव है और अन्तःकरणसे अनवच्छिन्न चैतन्य ईश्वर है ॥ ३५ ॥ वार्त्तिककार श्री सुरेश्वराचार्यका मत दर्शाते हैं- 'वार्तिक ० ' इत्यादिसे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136