Book Title: Siddhant Kalpvalli
Author(s): Sadashivendra Saraswati
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 27
________________ सिद्धान्तकल्पवल्ली [ मङ्गलाचरण वदनतदधोविभागव्यञ्जितमातङ्गमानवाभेदम् । मदनारिभागधेयं महिमानं वयमुपास्महे कमपि ॥ २॥ यदपाङ्गितः प्रबोधो भवदुःस्वमावसानकरः । तमहं परमशिवेन्द्रं वन्दे गुरुमखिलतन्त्रजीवातुम् ॥ ३ ॥ वीरासनासीनत्वमुक्कं भवति । वटभूरुहस्य वटवृक्षस्य मूले वसतीति वास्तव्यम् । 'वसेस्तव्यत्कर्तरि' इति कर्तरि तव्यत्प्रत्ययः । तदेकम् अव्यपदेश्यं श्रीदक्षिणामूर्तिरूपं वस्तु अनुसरामः-उपास्महे इत्यर्थः ॥ १॥ 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' इति प्रसिद्धेः परमश्रेयःसाधनीभूते ग्रन्थे बहुतरविघ्नसंभावनया तन्निवर्तनसमर्थ श्रीविघ्नराजानुसंधानरूपं मालान्तरमारचयतिवदनेति । वदनं मुखं तस्य अघोविभागः अधस्तनावयवसंघातः ताभ्यां व्यञ्जितः ज्ञापितः मातनमानवयोः गजनरयोः अभेदो यस्य स तथोक्तः, मुखे गजरूपोऽन्यत्र नररूप इति यावत् । मदनारेः परमशिवस्य भागधेयं भाग्यरूपं कमपि निरुपाख्यम् , श्रीविघ्नराजात्मकं महिमानं वयं उपास्महे भजामहे इत्यर्थः ॥ २॥ 'यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ' इत्यादिश्रुतेर्गुरूपदिष्टानुपदिष्टसकलार्थावगतिगुरुभक्त्यधीनेति गुरुं नमस्करोति-यदिति । यदपाङ्गितः बायाँ पैर रक्खा है, अर्थात जो वीरासनसे स्थित हैं और जो वटवृक्षके मूलमें रहते हैं, ऐसे किसी एक (अव्यपदेश्य श्रीदक्षिणामूर्तिरूप) वस्तुका हम अनुसरण करते हैं, उनकी उपासना करते हैं ॥ १ ॥ 'श्रेयस्कर कार्योंमें बहुत विघ्न आते हैं। ऐसी प्रसिद्धि है, अतः इस परमश्रेयःसाधनीभूत ग्रन्थमें अनेक विनोंकी संभावना है, उनकी निवृत्ति करनेमें समर्थ श्रीविनराज महागणपतिका स्मरणरूप दूसरा मंगलाचरण करते हैं-'वदन! इत्यादिसे । जिसने मुख और उसके अधोभाग (धड़) इन दोनोंसे गज और मनुष्य इन दोनोंके अभेदका बोधन किया है, ऐसे श्रीपरमशिवके भागधेय ( भाग्यस्वरूप ) किसी महिमाकी ( अवर्णनीय साक्षात् विघ्नराजकी) हम उपासना करते हैं ॥२॥ 'यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ । तस्यैते कथिता ह्याः प्रकाशन्ते महात्मनः ॥' (जिसकी देवमें परम भक्ति हो और जैसी देवमें वैसी ही गुरुमें परम भक्ति हो उसको ही शास्त्रोक्त अर्थ प्रकाशित होते हैं) इत्यादि श्रुतिसे यह प्रतीत होता है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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